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मन्त्रिपरिषद्
राजशासन में मन्त्रिपरिषद् का महत्त्व
राज्य की प्रकृतियों में राजा के पश्चात् द्वितीय स्थान मन्त्रियों को प्रदान किया गया है । मन्त्रियों के सत्परामर्श पर ही राज्य का विकास, उन्नति एवं स्थायित्व निभेर है । भारतीय मनीषियों ने मन्त्रियों को बहुत महत्व दिया है। उन की उपयोगिता के कारण ही समस्त आचार्यों ने राजा को मन्त्रियों को नियुक्ति करने का आदेश दिया है । साधारण कार्यों में भी एक व्यक्ति की अपेक्षा दो व्यक्तियों का उस पर विचार करना श्रेष्ठ बताया जाता है फिर राजकार्य तो बहुत जटिल होते हैं तब उन्हें अकेला राजा किस प्रकार कर सकता है। आचार्य सोमदेव ने भी मन्त्रियों एवं अमात्यों को राज्यशासन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है तथा उन के लिए प्रकृति शन्द का प्रमोग किया है (१०, १६७)। सोमदेव के कथनानुसार जो राजा मन्त्री, पुरोहित और सेनापति द्वारा निर्धारित किये हुए धार्मिक और आर्थिक सिद्धान्तों का पालन करता है वह आहार्मबुद्धि वाला है। १०,१)। गुरु का कथन है कि जो राजा मन्त्री, पुरोहित तथा सेनापति के हितकारी वचनों को नहीं मानता वह दुर्योधन राजा की तरह नष्ट हो जाता है। मन्त्री और पुरोहित को राजा का हितैषी होने के कारण सोमदेव ने उन्हें राजा के माता-पिता के समान बतलाया है ( ११, २)। मूर्ख और असहाय राजा मी सुयोग्य मन्त्रियों के परामर्श एवं अनुकूलता से शत्रुओं द्वारा अजेय हो जाता है (१०,३)। सोमदेव ने अपने कथन की पुष्टि में एक ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत किया है। वे कहते है कि इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने स्वयं राज्य का अधिकारी न होते हुए विष्णुगुप्त के अनुग्रह से राजपद प्राप्त कर लिया ( १०, ४)1 जो राजा मन्त्रियों के हितकारक वचनों की अवहेलना करता है वह निश्चय ही नष्ट हो जाता है ( १०, ५८)। अन्यत्र आचार्य लिखते हैं कि जो राजा मन्त्रियों की नियुक्ति नहीं करता और स्वच्छन्द रूप से शासन करता है वह अपने राज्य को नष्ट कर देता है (१०, १४३) । सोमदेव का कथन है कि युक्तियुक्त वचन तो बालक से भी ग्रहण
१. गुरु-नीतिया पृ० १०६ । बोराजा मन्त्रिपुर्वाणा न कशि हित मचः । स शीर्ष नाशमायः यथा तुर्योधना नृतः ।
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