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चाहने वाला राजा सुयोग्य मन्त्रियों का निर्वाचन करे अन्यथा राज्य का पतन अवश्यम्भावी है ।' कात्यायन का तो कयन यहाँ तक है कि राजा को अकेले बैठ कर किसी अभियोग का निर्णय नहीं करना चाहिए और अमात्यों एवं सम्यों गादि के साथ बैठ कर हो मुझदमों अथवा अभियोगों का निर्णय करना चाहिए । प्राचार्य कौटिल्य का कथन है कि जब कोई कठिन समस्या उपस्थित हो जाये अथवा प्राणों तक का भय हो तो जन्नियों एवं मापदलो : रामः उ सब कुछ कहें और उन का परामर्श ले । उन में से अधिक मन्त्री जिस बात को कहें, अथवा जिस उपाय का शोघ्र ही कार्य की सिद्धि वाला बतायें, राजा को चाहिए कि उसो उपाय का अनुष्ठान करे। मन्त्रिपरिषद् का महत्त्व प्रदर्शित करते हए कौटिल्य ने लिखा है कि इन्द्र को मन्त्रिपरिषद में एक हजार ऋषि थे। वे ही कार्यों के द्रष्टा होने के कारण इन्द्र के चक्षु के समान थे। इसलिए इस दो नेत्र वाले इन्द्र को भी सहस्राक्ष कहा जाता है । इसी प्रकार प्रत्येक राजा को अपनी मन्त्रिपरिषद् में सामानुसार अनेक मन्त्रियों की नियुक्ति करनी चाहिए । इस प्रकार राजवन्त्र का महान् समर्थक कौटिल्य भी राजा को यही आदेश देता है कि उस को मन्त्रियों की नियुक्ति करनी चाहिए तथा प्रत्येक प्रश्न पर परिषद् से विचार-विमर्श करने के उपरान्त बहमत के आधार पर कार्य करना चाहिए । मन्त्रिपरिषद् की रचना
नीतिवाक्यामृत में मन्त्रिपरिषद् के सम्बन्ध में मन्त्री एवं अमात्य शब्दों का प्रयोग हमा है। अन्य राज्यशास्त्र प्रणेताओं ने अमात्य का उल्लेख राज्य को प्रकृति के रूप में किया है और समांग राज्य में अमात्य को भी राज्य की एक प्रकृति माना है । परन्तु आचार्य सोमदेव ने अमात्य और मन्त्री में कुछ भेद प्रवशित किया है। इसी उद्देश्य से उन्होंने मन्त्री एवं अमात्य दो पृथक् समद्देशों की रचना की है। मन्त्री पुरोहित और सेनापति की वर्षा मन्त्री समुद्देश में की है तथा अमात्य की अमात्य समद्देश में । सम्भवतः सोमदेव ने मन्त्री शब्द का प्रयोग प्रधानमन्त्री एवं अन्तरंग परिषद् के मन्त्रियों के लिए किया है तथा अमात्य शब्द का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् के अन्य सदस्यों एवं उच्य राज्याधिकारियों के लिए किया है। अमात्य की परिभाषा देते हुए आचार्य लिखते हैं कि जो राजा द्वारा प्रदत्त दान-सम्मान प्राप्त कर कर्तव्य पालन में उत्कर्ष व अपकर्ष करने से क्रमश: राजा के गुख-दुःख में भागी होते हैं उन्हें अमात्य कहते हैं (१८, १५)। अव: राजकार्यों में सहायता प्रदान करने वाले अधिकारी को सोमदेव ने अमात्य कहा है। कामन्दक तथा अग्निपुराण में भी अमात्य की परिभाषा
१. शुक्र. २,८१। २. बौरमित्रोदा-पृ०१४। ३. को अयं०१,१। ४. वहीं, इन्द्रस्य हि मन्त्रिपरिषद्-ऋषीणा सहरूम् । स तत्त्वाः । तस्मादिम अर्थ महलाक्षमाहूः। यथासापर्यमिति कौरव्यः । घस्य स्वपई परम्सं च चिराधैमुः ।
मन्त्रिपरिषद्