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विपिपूर्वक शिलाभों पुनः अपिल गझ निमित रूप से न हो सकें। यदि राजा पालन न करे तो विद्या पढ़कर स्नातक हर ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करने वाले और तपस्वी तथा ब्राह्मण लोग चारों वेदों का अध्ययन छोड़ दें। यदि राजा प्रजा का पालन न करे ती मनुष्य हताहत होकर धर्म का सम्पर्क छोड़ दें और चोर घर का माल लेकर अपने शरीर और इन्द्रियों पर चोट आये बिना ही सकुशल लौट जायें । रवि राजा प्रजा का पालन न करे तो चोर और लुटेरे हस्तगत वस्तु को भी छीन लें, सारो मर्यादाएँ भंग हो जायें और सब लोग भय से पीड़ित हो चारों ओर भागते फिरें। यदि राजा पालन न करें तो सर्वत्र अन्याय एवं अत्याचार फैल जाये, वर्णसंकर सन्तान उत्पन्न होने लगें और समस्त देश में दुभिक्ष फैल जाये ।
राजा से रक्षित हुए प्राणी सब ओर से निर्भय हो जाते हैं और अपनी इच्छानुसार घर के द्वार खोलकर सोते है। यदि धर्मात्मा राजा भली-भौति पृथ्वी की रक्षा न करे तो कोई भी मनुष्य अपशब्द अथवा हाथ से पीटे जाने का अपमान कैसे सहन करे । यदि पृथ्वी का पालन करने वाला राजा अपने राज्य की रक्षा करता है तो समस्त आभूषणों से विभूषित हुई सुन्दरी स्त्रियां किसी पुरुष को साथ लिये बिना ही निर्भय होकर मार्ग से आती जाती हैं। जब राजा रक्षा करता है तो सब लोग धर्म का ही पालन करते है, कोई किसी की हिंसा नहीं करता और सभी एक-दूसरे पर अनुग्रह करते है । जब राजा रक्षा करता है तब तीनों वर्गों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) के लोग बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान करते है और मनोयोग पूर्वक विद्याध्ययन में रत रहते है। खेती आदि समुषिप्त जीविका की व्यवस्था हो इस जगत् के जीवन का मूल है तथा घष्टि आदि के हेतुभूत यो विद्या से ही सर्वदा जगत् का पालन होता है। जब राजा प्रजा की रक्षा करता है तभी सब कुछ ठीक प्रकार से चलता है। जब राजा विशाल सैनिक शक्ति के सहयोग से मारी भार वहन कर के प्रजा को रक्षा का भार अपने ऊपर लेता है तब यह सम्पूर्ण जगत् प्रसन्न हो जाता है । जिस के न रहने पर सब ओर से समस्त प्राणियों का अभाव होने लगता है और जिस के रहने पर सर्वदा सब का अस्तित्व बना रहता है, उस राजा का पूजन कौन नहीं करेगा? जो उस राजा के प्रिय हितसाधन में संलग्न रहकर उस के सर्व लोक भयंकर शासन भार को वहन करता है वह इस लोक और परलोक में विजय पाता है।'
बसुममा मौर बृहस्पति के उपर्युक्त संवाद से राजा की आवश्यकता एवं उसका महत्त्व भलो-भांति स्पष्ट हो जाता है। राजा के अभाव में कौन-कौन सी हानियाँ होती है तथा उस के होने से प्रजा को क्या-क्या लाभ होता है इन समस्त बातों पर प्रकाश डालने वाला यह संवाद बहुत ही महत्वपूर्ण है।
राजा की आवश्यकता के विषय में अन्य अन्यों में भी उल्लेख मिलता है। ऐतरेय ब्राह्मण में इस प्रकार का वर्णन प्राप्त होता है.-"देवताओं ने राक्षसों द्वारा १. महा० शान्तिः ६८, ८-३८ ।
राजा