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नारदस्मृति में बताया गया है कि राजा अग्नि, इन्द्र, सोम, यम और कुबेर इन पाँच देवताओं के कार्यों का सम्पादन करता है। यह वर्णन इस प्रकार है---" राजा के कारण अथवा किसी कारण से क्रोधित होने पर क्रोध से दूसरे को तापित करने अर्थात् उत्पीड़ित करने के कारण वह अग्नि के समान होता है । अपनी शक्ति के ऊपर निर्भर होता हुआ जब वह शस्त्र धारण कर के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की इच्छा से आक्रमण करता है तो वह इन्द्र का स्वरूप धारण करता है। जब राजा तेज से लोगों को उत्पीड़ित करने वाले स्वरूप को हटाकर सौम्य भाव से जनता के सम्मुख उपस्थित होता है तब वह सोम का स्वरूप ग्रहण करता है। अपने न्याय के आसन पर बैठकर न्याय करते समय वह यम का स्वरूप धारण करता हूँ। जब वह सम्मानित व्यक्तियों अथवा अभावग्रस्त व्यक्तियों को उपहार प्रदान करता है तो वह कुबेर का रूप धारण करता है ।"" इस का अभिप्राय यही है कि जब राजा जिस देवता के समान आचरण करता है तब वह उसी देवता के स्वरूप को ग्रहण करता है। जब राजा के कर्मों में विभिन्न लोकों के गुणों का सामंजस्य दृष्टिगोचर होने लगता है तब उसे इम लोकपालों का अंशभूत कहा जाता है और इस प्रकार राजा सब से बड़ा लोकपाल कहा जाता है ( १७, ५२)। इसी प्रकार पुराणों में भी विविध स्थलों पर राजा की तुलना विभिष देवताओं से को गयी है। मार्कण्डेयपुराण में नारदस्मृति की भांति ही पाँचों देवताओं से राजा की तुलना की गयी है। अग्निपुराण में भी राजा को सूर्य, चन्द्र, वायु, यम, वरुण, अग्नि, कुबेर, पृथ्वी तथा विष्णु आदि देवताओं का स्वरूप माना है, क्योंकि वह उन के समान ही आचरण करता है । शुक्रनीति में भी इस प्रकार के विचार उपलब्ध होते हैं ।" भागवत पुराण के अनुसार विष्णु, ब्रह्मा, शिव, इन्द्र, वायु, वरुण आदि देवता राजा के शरीर में निवास करते हैं और राजा सभी देवताओं के अंशों से परिपूर्ण होता है । वायुपुराण में चक्रवर्ती राजा को विष्णु का
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अमासाश्वादित्यस्य हर िरश्मिभिः । तथा हरेक राष्ट्रान्नित्यमर्कतं हि तत् ॥ प्रजिरय सर्वभूतानि सभापति मारुतः । तथा चारैः प्रवेष्टव्यं तमारुतम् । प्रथमः प्रियद्वेष्य प्राप्ते काले नियच्छति । तथा राज्ञा नियताः प्रजास्ततम् । वरुणेन यथा शोर्म एवाभिदश्यते। तथा
गृहीबाबत वारुणम् ॥
परिपूर्ण यथा चन्द्र दृष्ट्वा दुष्यन्ति मानवाः ३
तथा प्रकृतयस्मिद् सन्नतिको नृपः ।
१. नारदस्मृति - जॉली द्वारा अनुदित पृ० ११३-१४ क २६-३२. १
२. मार्कण्डेय० २७, २१-२६
३. अग्नि० २२६, ९७-२० ॥ ४. शुक्र०, १, ७३-७£1 ५.१४, २६-२०
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नीतिवाक्यामृत में राजनीति