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अंश माना गया है। रामायण में भी इसी प्रकार राजा को देवता बतलाया गया है और अनेक देवताओं से उस की तुलना को गयी है।
___ राजा के देषो स्वरूप के वर्णन में दो सिद्धान्त प्रतिलक्षित होते है। प्रथम तो यह कि राजा पृथ्वी पर मनुष्य रूप में महान् देवता है और द्वितीय यह कि राजा का देवत्व उस के कार्यों में निहित है। विविध देवताओं के समान कार्य करने पर ही उस को उन देवताओं का स्वरूप प्रदान किया गया है। जब राजा जिस देवता के समान आचरण करता है तब वह उस को प्रतिमूर्ति होता है। मनु उपर्युक्त दोनों सिद्धान्तों को मानते है, किन्तु नारद द्वितीय सिद्धान्त को हो स्वीकार करते है अर्थात् वे राजा को देवतामों के समान कार्य करने के कारण ही उसे देवता मानते हैं।
उपर्युक्त वर्णम से यह स्पष्ट है कि राजा के देवीस्वरूप का सिद्धान्त अति प्राचीन है और यह सिद्धान्त गुप्त काल तक प्रचलित रहा । सभी प्राचीन राज्यशास्त्र बेत्ताओं एवं आचार्यों ने राजा को देवांशों से निर्मित बताया है तथा उस को उन्हीं देवों के समान आचरण करने का आदेश दिया है जिन के अंशों से उस का सूजन हुआ है । राजा को देवताओं के स्वरूप में तभी तक देखा जाता है जब तक वह जन के समान माचरण करता था। प्राचार्य सोमदेवसूरि भी इस परम्परागत विचार धारा में आस्था रखते थे। अत: उन्होंने इस विषय की विशद व्याख्या न कर के अपने विचार संक्षेप में ही व्यक्त किये हैं। उन का कथन है कि राजा ब्रह्मा, विष्णु, महेश की मूर्ति है अत: इस से दूसरा कोई प्रत्यक्ष देवता नहीं है (२९, १५)। उन्होंने राजा को उक्त देवताओं से इस प्रकार तुलना की है-जिस ने प्रथम धाश्रम (ब्रह्मचर्य) को स्वीकार किया है, जिस की बुद्धि परम ब्रह्म ईश्वर या (ब्रह्म वर्यव्रत) आसक्त है, गुरुकुल को जपासना करने वाला एवं समस्त राज विद्याओं (आन्वीक्षिकी, त्रयो, वार्ता और वण्डनीति) का वेता विद्वान् तथा युवराजपद से अलंकृत ऐसा क्षत्रिय का पुत्र राजा ब्रह्मा के समान माना गया है। लक्ष्मी की दीक्षा से अभिपित्त अपने शिष्ट पालन व दुष्ट निग
आदि सदगुणों के कारण प्रजा में अपने प्रति अनुराग उत्पन्न करने वाले राजा को नीतिकारों ने विष्णु के समान बतलाया है। जिस की बड़ी हुई प्रताप रूपी तृतीय नेत्र की अग्नि परम ऐश्वर्य को प्राप्त होने वाले राष्ट्रकंटक शत्रुरूप दानों के संहार में प्रयत्नशील है. ऐसा विजिगीषु राजा महेश के समान बतलाया गया है ( २९, १७-१९) । इस प्रकार राजा के तीनों देवों के समान आचरण करने को बात नौसिवाक्यामृत में उपलब्ध होती है । इस ग्रन्थ में भी देवताओं के समान आचरण करने के कारण हो राजा को देवी स्वरूप प्रदान किया गया है।
१.बायु, ५७, ७२ । २. रामायण, ३, ६, १८-१६ ।
राखा