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है । इस के लिए राजा को पाङ्गुष्य नीति का पूर्ण ज्ञाता एवं साम, दाम, भेद तथा दण्ड आदि उपायों का समुचित प्रयोक्ता होना परम आवश्यक है। राजा को इस घागुण्य नीति तथा इन चार उपायों का प्रयोग किस प्रकार करना चाहिए । इस का विशद विवेचन नोतिवाक्यामृत के षाड्गुण्य समुद्देवा एवं युद्ध समुद्देश में किया गया है । राजा को अपने से शक्तिशाली शत्रु से कमी युद्ध नहीं करना चाहिए। राजनीतिशासन सत्यायों में घिमिलेगा जो सामासि, प्राप्त की रक्षा और रक्षित की वृद्धि करने के लिए तथा प्रजा-पीडक राष्ट्र कण्टकों एवं शत्रओं पर विजय प्राप्त करने के लिए न्याययुक्त अपनी और शत्रु की शक्ति को विचार कर तदनुकूल क्रोध करने का विधान किया है तथा अन्याय युक्त का निषेध अपने राज्य की सुरक्षा के लिए राजा को राज्यमण्डल की भी स्थापना करनी चाहिए और उन राज्यों में दूत एवं चरों की भी नियुक्ति करनी चाहिए। इस सम्बन्ध में भी मीतिवाक्याभूत में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है ( समु० १३ और १४)।
५. न्याय सम्बन्धी फतव्य-राजा का यह भी एक परम कर्तव्य बताया गया है कि यह पक्षरावरहित न्याय करे ( २६, ४१ )। इस के लिए उसे दण्डनीति का ज्ञाता होना आवश्यक है । सोमदेव लिखते है कि अपराधी को अपराधानुकूल बण्ड देना ही दण्डनीति है. { ९, २)। आचार्य आगे लिखसे हैं कि राजा के द्वारा प्रजा की रक्षा के लिए अपरावियों को दण्ड दिया जाता है, धन के लिए नहीं ( ९, ३ । अन्यत्र सोमदेव लिखते हैं कि यदि राजा प्रजा के साथ अन्याय करता है तो इस का अर्थ समुद्र का मर्यावा उल्लंघन करना ही है ( १७, ४९ ) । जब राजा न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करता है तो सभी दिशाएँ प्रजा को अभिलषित फल देने वाली होती है । न्यायी राजा के प्रभाव से मेषों से यथासमय दृष्टि होती है और प्रजा के सभी उपद्रव शान्त होले है ( १७, ४६ )। जो राजा साधारण अपराध के लिए प्रजा जमों में दोषों का अन्वेषण कर भीषण दण्ड देता है वह प्रजा का शत्रु है । इस का अभिप्राय यही है कि राजा अपराधियों को उन के अपराधानुकूल हो दण्ड की व्यवस्था करे। किन्तु अपराधियों को खण्ड अवश्य मिलना चाहिए क्योंकि दण्ड के अभाव में प्रजा में मात्स्यन्याय की उत्पत्ति हो जाती है (९.७)। राजरक्षा
राजा इतने महत्वपूर्ण कर्तव्य करता था इसलिए उस की प्रधानता थो । अतः उस की रक्षा के लिए प्राचीन आचार्यों ने कुछ विशिष्ट नियमों अथवा उपायों का उल्लेख किया है। राजरक्षा के विषय में आचार्य सोमदेव ने भी इसी प्रकार के नियमों का प्रतिपादन अपने ग्रन्थ में किया है। सोमदेव लिखते है कि राजा की रक्षा होने से हो समस्त राष्ट्र सुरक्षित रहता है। इसलिए उसे अपने 'कुटुम्बियों तथा शत्रुओं से अपनो रक्षा करनी चाहिए { २४, १)। सजशास्त्र के विद्वानों का कथन है कि राजा
राजा