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लिए राजा को सुसंगठित सेना को भी स्थापना करनी चाहिए तथा विशिष्ट सैनिक गुणों से सम्पन्न व्यक्ति को सेनाध्यक्ष के पद पर नियुक्त करना चाहिए । आचार्य सोमदेव मन्त्रियों, सेनापति एवं अन्य उच्च राजकर्मचारियों के गुणों के साथ ही उन के स्वदेशवासी होने पर विशेष बल देते हैं ! उन का कथन है कि मन्त्री आदि राजकर्मचारी स्वदेशवासीही होमे चाहिए, क्योंकि समस्त पक्षपातों में स्वदेश का पक्षपान श्रेष्ठतम होता है (१०, ६)। राजा के उपाध्याय भी विशिष्ट गुणों से युक्त होने चाहिए (५, ६५)। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को ठीक प्रकार से बनाये रखने के लिए राजा विनियमों से विभूषित विविध प्रकार के चर एवं पूतों की नियुक्ति करे। सुयोग्य चर एवं दूतों से ही अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में राज्य की प्रतिष्ठा स्थापित होती है। तथा राज्य बाह्य आक्रमणों से सुरक्षित रहता है। इस प्रकार विभिन्न राजकर्मचारियों को नियुक्ति कर के राजा अपने प्रशासन को श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करे, और अपने महान् कर्तव्म का पालन करे।
सैन्य व्यवस्था भी प्रशासन का ही अंग है क्योंकि बल से राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित होती है। आचार्य सोमदेव ने राज्य का मूल क्रम और विक्रम को बताया है (५, २७) । विक्रम अर्थात् शक्ति के अभाव में क्रमागत राज्य भी नष्ट हो जाता है। अतः राजा को अपनी सैनिक शक्ति सुदृढ बमानी चाहिए। सोमदेव ने चतुरंगिणी सेना का संगठन करने तथा उस के प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था की ओर संबत किया है। सैन्य-शक्ति को प्रसंशा करते हुए सोमदेव लिखते हैं कि जिस प्रकार घटे हुए मुणतन्तुओं से दिग्गज भी बशीभूत कर लिया जाता है उसी प्रकार राजा भी सैन्य-शक्ति से शक्तिशाली शत्रु को भी परास्त कर देता है {३०, ३८)। हीन सैनिक शक्ति वाले राजा के सम्बन्ध में वे इस प्रकार लिखते हैं कि जिस प्रकार जंगल से निकला हुआ सिंह गीदड़ के समान शक्तिहीन हो जाता है उसी प्रकार संन्य एवं स्थान भ्रष्ट राजा मी क्षीण शक्ति वाला हो जाता है (३, १६)। अतः राजा का यह कर्तश्य है कि वह सर्वदा अपनी सन्ध-शक्ति को सुदृढ़ बनाये रखे। सोमदेव ने यह लिखा है कि राजा को सैनिक पाक्सि की वृद्धि प्रजा में अपराधों का अन्वेषण करने के अभिप्राय से नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से प्रजा उस से असन्तुर होकर शत्रुता करने लगती है और इस के परिणामस्वरूप उस का राज्य नष्ट हो जाता है (९, ४) 1
इस का अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि राजा बल का प्रयोग करे हो नहीं। राजा का उल्लंघन करने वालों के लिए दण्ड का सर्वत्र विधान है। सोमदेव लिखते है कि राजा आजा भंग करने वाले पुत्र पर भी क्षमा न करे ( १७, २३ ) । अन्यत्र आचार्य लिखते है कि जिस की आज्ञा प्रजाजनों द्वारा उल्लंघन की जाती है, उस में और चित्र के राजा में क्या अन्तर है । राज्य की रक्षा के लिए कुशल विदेश नीति का निर्धारण भी परम आवश्यक
नीतिवाक्यामृत में राजनीति