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अपनी रक्षा में ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करें जो उस के वंश का ( माई आदि ) हा अथवा वैवाहिक सम्बन्धों से बँधा हुआ हो और जो नीतिशास्त्र का ज्ञाता हो, राजा से स्नेह रखने वाला हो तथा राजकीय कर्तव्यों में निपुण हो ( २४, २) । राजा विदेशी पुरुष को जिसे धन व मान देकर सम्मानित नहीं किया हो और पहले दण्ड पाये हुए स्वदेशवासी व्यक्ति को जो बाद में अधिकारी बनाया गया हो अपनी रक्षा के कार्यों में नियुक्त न करें, क्योंकि असम्मानित विदेशी तथा दण्डित स्वदेशवासी द्वेषयुक्त होकर उस से बदला लेने की कुचेष्टा करेगा ( २४, ३ )। जिस प्रकार जीवन रक्षा में बायु मुख्य है उसी प्रकार राष्ट्र के सात अंगों में राजा की प्रधानता है। अतः राजा को सर्वप्रथम अपनी रक्षा करनी चाहिए ( २०, ६) । राजा को सर्वप्रथम रानियों से, उस के बाद फ्रुटुम्बियों से और तत्पश्चात् पुत्रों से अपनी रक्षा करनी चाहिए ( २४, ७) । राजा को वेश्या सेवन कभी नहीं करना चाहिए। उसे स्त्रियों के घर में कभी प्रविष्ट नहीं होना चाहिए । इस का कारण यह है कि वेश्याओं के यहाँ सभी प्रकार के व्यक्ति आते हैं, इसलिए वे शत्रुपक्ष से मिलकर राजा को मार डालती हैं ( २४, २९ ) । जिस प्रकार सर्प की बामी में प्रविष्ट हुआ मेक नष्ट हो जाता है उसी प्रकार जो राजा लोग स्त्रियों के घर में प्रवेश करते हैं वे अपने प्राणों को नष्ट कर देते हैं, क्योंकि स्त्रियों चंचल प्रकृति के वशीभूत होकर उसे मार डालती हैं अथवा किसी अन्य व्यक्ति से उसका वध करा देता हूँ ( २४, ३१ ) ।
राजा का यह भी कर्तव्य है कि यह स्त्रियों के घर से आयी हुई किसी भी वस्तु का भक्षण न करें ( २४, ३२ ) । उसे भोजनादि के कार्य में स्त्रियों की नियुक्ति नहीं करनी चाहिए, क्योंकि स्त्रियों चंचलतावश अनर्थ कर सकती हैं ( २४, ३३ ) । राजा को स्त्रियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि वशीकरण, उच्चाटन और स्वच्छन्दता चाहने वाली स्त्रियों सभी प्रकार का अनर्थ कर सकती है ( २४, ३४ ) । आचार्य सोमदेव ने अपने मत की पुष्टि के लिए कुछ ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं । वे लिखते हैं कि इतिहास के अवलोकन से जात होता हूं कि यवन देश में स्वच्छन्द वृत्ति चाहने वाली मणिकुण्डला नाम की पटरानी ने अपने पुत्र के राज्यार्थ अपने पति अंगराज को विषदूषित मदिरा से मार डाला । इसी प्रकार सूरसेन की वस्न्तमति नाम की स्त्री ने विष से रंगे हुए अधरों से, सुरतविलास नामक राजा को, वृकोदरी ने दशा ( भेलसा ) में विषलिप्त करघनी से, मदनार्णव राजा को मदिराक्षी ने मगध देश में बी दर्पण से, मन्मथविनोद को और पाण्ड्य देश में चण्डरसा नामक रानी ने केशपाश में छिपी हुई कटारी से पुण्डरीक नामक राजा को मार डाला ( २४, ३५-३६ ) 1 आचार्य के कथन का अभिप्राय यही है कि राजा को स्त्रियों पर कमी विश्वास नहीं करना चाहिए और न उन में अधिक आसक्ति ही रखनी चाहिए तथा उन के घर में कभी प्रवेश नहीं करना चाहिए।
कुटुम्बीजनों का संरक्षण भी राजा के विनाश का कारण होता है। इस विषय
नीतिवाक्यामृत में राजनीति
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