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राजा की योग्यता
प्राचीन राजशास्त्र प्रणेताओं ने राजा के लिए कुछ विशिष्ट गुणों का होना भावश्यक बतलाया है। माना बह पमित हो सकमा ए जिस में शास्त्रों द्वारा निर्धारित योग्यताएं होती थीं । राजा में साधारण व्यक्ति को अपेक्षा महान् गुण होने आवश्यक है, क्योंकि वह जनता का स्वामी होता है। आचार्य सोमदेवसूरि ने राजा की पोग्यताओं का बड़े विस्तार के साथ वर्णन किया है। आचार्य द्वारा राजा के लिए निर्धारित योग्यताओं को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं। प्रथम कोटि में राजा की राजनीतिक योग्यताएँ आती है, जो उस के राजा होने के लिए परम आयश्यक है। उन्हीं के होने से राज्य की स्थिरता एवं समृद्धि सम्भव है ! द्वितीय कोटि में उस की सामान्य योग्यताएँ आती है, जोकि उस में तथा साधारण व्यक्ति दोनों में ही होनी चाहिए। ये योग्यताएं राजा की सामाजिक स्थिति से सम्बन्ध रखने वाली है। इसलिए इन को सामान्य योग्यताओं की श्रेणी में रखा गया है। आचार्य सोमदेव ने ये योग्यताएँ राजा तथा साधारण व्यक्तियों, दोनों के लिए आवश्यक बतलायी है। राजा की इन योग्यताओं के कारण ही उस के राज्य में देश की सामाजिक उन्नति सम्भव हो सकती है 1 जिस राजा में इम गुणों का अभाव होगा उस राज्य की सामाजिक स्थिति अन्नप्त नहीं हो सकती । राजा भी समाज का ही अंग है और यही उस का कर्णधार है। समाज को उमति उसी के व्यक्तित्व पर निर्भर है। इसी उद्देश्य से आचार्य सोमदेव ने राजा को उन्नति में सहायक उन योग्यताओं का भी उल्लेख किया है जिन का सम्बन्ध समाज से है और जिन गुणों पर देश की सामाजिक उन्नति निर्भर है।
राजा की योग्यताओं का उल्लेख नोतिवाक्यामृत में एक स्थान पर ही नहीं हुआ है अपितु स्थान-स्थान पर इन योग्यताओं अथवा गुणों का उल्लेख मिलसा है। राणा की इन योग्यताओं का वर्णन संक्षेप में इस प्रकार किया जा सकता है-"राजा को जितेन्द्रिय, महान् पराक्रमी, नीतिशास्त्र का ज्ञाता, आन्वीक्षिकी, अयो, वार्ता और दण्डनीति आदि गनविद्याओं में पारंगत, त्रयो (तीनों वेदों) का ज्ञाता, नास्तिकदर्शन का जामने वाला, उत्साही, धर्मारमा, स्वाभिमानी, शारीरिकमनोज्ञ माकृति से युक्त, विनम्र, न्यायी, प्रजापालक, साम, दाम, दण्ड और भेद आदि नीतियों में प्रवीण तथा पागुभ्य ( सन्धि, विग्रह, याम, आसन, संश्रय, एवं घोभाव ) के प्रयोग में यक्ष होना चाहिए।"
राजा की सामान्य योग्यताओं का वर्णन भी अनेक स्थलों पर हुआ है। उन सब का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है-"राजा को जितेन्द्रिय, काम, क्रोध, लोभ, हर्ष, मान, मद इस अरिषड्वर्ग का विजेता, सदाचारी, बिनयी, निरभिमानी. अनोध, कुलीन, क्षमाशील, गुणग्राही, दानी, गुरुजनों का सम्मान करने वाला होना चाहिए।" . राजा को उपर्युक्त योग्यताओं अथवा गुणों के साथ ही नीतिवाक्यामृत में राजा
नीतिवाश्यामृत में राजनीति