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के दोषों पर भी प्रकाश डाला गया है। उन दोषी के कारण होने वाली हानियों का ओर मी संकेत किया गया है। राजा के अवगुणों में कामुकता, क्रोध, दुराचारिता, दुष्टता, सैन्यहीनता, अभिमान, शास्त्रज्ञानशून्यता, मूर्खता, अनाचार, कापरता, दुराअहवा, व्यसम, स्वेच्छाचारिता, लोभ, आलस्य, अविश्वास, सेवकों को आश्रय न देना भादि सम्मिलित हैं। राजा की योग्यताओं के विषय में अन्य आचार्यों के विचार
राजा की योग्यताओं के विषय में स्मृतिकारों तथा अर्थशास्त्र के रचयिताओं एवं नीतिशास्त्र के प्रणेताओं ने पूर्ण प्रकाश डाला है । याज्ञवल्पय ने राजा को राजनीति प्रधान एवं सामान्य योग्यताओं पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। उन्होंने राजधर्म के प्रकरण का प्रारम्भ हो राजा की योग्यताओं के वर्णन से किया है। प्रथम कोदि में आने वाली योग्यताओं के विषय में वे इस प्रकार लिखते है-"राजा को अति वत्साही, पण्डित, शूरवीर, रहस्यों का ज्ञाता ( वैधों का ज्ञाता), राज्य की शिथिलता को गुप्त रखने वाला, राजनीति में निपुण, वेदत्रयी का ज्ञाता एवं वार्ता और दण्डनीति में कुशल होना चाहिए । इस के साथ ही उसे पाडगुण्य मन्त्र का भी ज्ञाता होना चाहिए ।''
वित्तीय कोटि में आने वाली योग्यताओं के सम्बन्ध में याज्ञवल्क्य लिखते हैं कि "वह ( राजा ) आन्वीक्षिकी { आत्मविद्या, तर्कशास्त्र) में निपुण, विनीत, स्मृतिमान, सत्यवादी, वृद्धजनों का सम्मान करने वाला, अश्लील और कठोर वाणी से रहित, धार्मिक, व्यावहारिक बस्तुओं जैसे कृषि कर्म, कोश बृद्धि आदि कार्यो का शाता एवं जितेन्द्रिय होना चाहिए।"
नारद ने राजा की योग्यताओं के विषय में केवल इतना ही लिखा है कि "राजा अपने विनय और सदाचार से ही प्रजा पर प्रभुत्व प्राप्त करता है।"3 अग्निपुराण में भगवान राम के मुख से राजा के लक्षणों का वर्णन कराया गया है जो इस प्रकार है-'राजकुल में उत्पन्न, शील, अवस्था, सत्य (), दाक्षिण्य, शिप्रकारिता, षड्भक्तित्व, अविसंवादिता ( सत्यप्रतिज्ञता), कृतज्ञता, देवसम्पन्नता (भाग्यशीलता), अक्षुद्र पारिवारिकता, दीर्घवर्शिता, पवित्रता, स्यूल लक्ष्यता ( दानशीलता), धार्मिकता, वृद्धसेवा, सत्य और उत्साह आदि गुणों से सम्पन्न ही व्यक्ति राजा बनने योग्य है।"
आचार्य शुक्र का कहना है कि पूर्व जन्म के तप के कारण ही व्यक्ति राजा होता है। पूर्व जन्म में वह जैसी तपस्या कर चुका होता है उसी के अनुरूप वह सात्त्विक, राजसी या तामसी होता है। जो राजा सात्त्विक तप किया होता है वह १. वाश०१.३१०-११ । २. वही, १, ३०६-११। इ. नारदस्मृति अ० १७(१) लोक २५, जोलो द्वारा अनूदित । १. अग्नि० २३६, २६ ।
राजा
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