________________
प्रकार की प्रार्थना को सुनकर ब्रह्मा ने उम से कहा- "सुर श्रेष्ठगण, तुम्हारा भय दूर हो जाना चाहिए। मैं तुम्हारे कल्याण का उपाय सोचूँमा । तदनन्तर ब्रह्माजी ने अपनी बुद्धि से एक लाख अध्यायों के एक ऐसे नीतिशास्त्र की रचना की जिस में धर्म, अर्थ और काम का विस्तारपूर्वक वर्णन है । जिस में इन दगौ का वर्णन हुआ है, वह प्रकरण त्रिवर्ग नाम से विख्यात हैं।
तदनन्तर देवताओं ने भगवान् विष्णु के पास जाकर कहा--भगवन् ! मनुष्यों में जो एक पुरुप सर्वश्रेष्ठ पद प्राप्त करने का अधिकारी हो, जस का नाम बताइए । तब प्रभावशाली भगवान नारायण ने भली-भांति विचार कर के एक मानसपुत्र की सृष्टि की, जो विरजा के नाम से विख्यात हुमा । महाभाग बिरजा ने पृथ्वी पर राजा होने की अनिच्छा प्रकट की। उन्होंने संन्यास लेने का निश्चय किया। विरजा के कीर्तिमान नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ। वह भी पांचों विषयों से ऊपर उठकर मोक्ष मार्ग का ही अबलम्बन करने लगा । फोलि मान के कर्दम नामक पुत्र डा। वह भी तपस्या में रत हो गया । प्रजापति कर्दम के पुत्र का नाम अनंग था, जो कालक्रम से प्रजा का संरक्षण करने में समर्थ तथा दण्डनीतिविद्या में निपुण था । अनंग के अतिबल नामक पुत्र हुआ। वह भी नोतिशास्त्र का ज्ञाता था। उस ने विशाल राज्य प्रास किया । राज्य प्राप्त कर के वाह इन्द्रियों का वास बन गया । मृत्यु को एक मानसिक कन्या पी, जिस का नाम था सुनीमा, जो अपने रूप और गुण के लिए तीनों लोकों में विख्यात थी। उसी ने वन को जन्म दिया।
बेन राग-द्वेष के वशीभूत हो प्रजाओं पर अत्याचार करने लगा । तब बेदवादी ऋषियों ने मन्त्रपूत कुशों द्वारा उसे मार डाला। फिर वे ही कृषि मन्त्रोच्चारणापूर्वक वैन की दाहिनी जंघा का मन्थन करने लगे। उस से इस पुथ्वी पर एक नाटे कद का मनुष्य उत्पन्न हुआ, जिस की आकृति बेडौल थी । इस के पश्चात् फिर महषियों ने धेन की दाहिनी भुजा वा मन्थन बिमा । उस से देवराज इन्द्र के समान पुरुप उत्पन्न हुआ। यह कवच धारण किये, कमर में तलवार बांधे और बाण लिये प्रकट हुआ। उसे वेदों और वेदान्तों का पूर्ण ज्ञान था। उसे धनुर्वेद का मो पूर्ण ज्ञान था। नरश्रेष्ठ वेगकुमार को समस्त दण्डनीति का स्वतः ही शान हो गया। उस ने हाथ जोड़कर उन महपियों से कहा कि धर्म और अर्थ का दर्शन कराने वाली अत्यन्त सूक्ष्म बुद्धि मुझे स्वतः ही प्राप्त हो गयो है। मुझे इस बुद्धि के द्वारा आप लोगों की कौन-सी सेवा करनी चाहिए, यह मुझे यथार्थ रूप से बताइए । तब वहाँ देवताओं और उन महर्षियों में उस से कहा-देनादन जिस कार्य में नियमपूर्वक धर्म की सिद्धि होती हो, उसे निर्भय होकर करो। प्रिय और अप्रिय का विचार लोड़कर काम, क्रोध, लोभ और मान को दर हटाकर समस्त प्राणियो के प्रति समभाव रखो। लोक में जो कोई भी मनुष्य
य
१. महा० शान्तिा
६. १५-२६ ।
नीतिवाक्यामृत में रजनीति