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धर्म से विचलित हो, उसे सनातन धर्म पर दृष्टि रखते हुए अपने बाहुबल से परास्त कर के दण्ड दो। साथ ही यह प्रतिज्ञा कर कि मैं मन, पाणी और क्रिया द्वारा भूतलवर्ती ब्रह्म ( वेद ) का निरन्तर पालन करूंगा। वेद और दण्डनीति से सम्बन्ध रखने वाला जो नित्य धर्म बताया गया है, उस का मैं नि:शंक होकर पालन करूंगा और कभी स्वच्छन्द महीं होऊंगा। परमतप प्रभो, साथ ही यह प्रतिज्ञा करो कि ब्राह्मण मेरे लिए अदण्डनीय होने तक में सम्पूर्ण जगत् की वर्णाता और धर्मसंकरता बचाऊंगा। तब वेनकुमार ने उन देवताओं तथा जन अग्नवर्ती कषियों से कहा-नरश्रेष्ठ महात्माओ, महाभाग ब्राह्मण मेरे लिए सर्वदा वन्दनीय होंगे। उन से ऐसा कहने पर उन बेदवादी महपियों ने उन से इस प्रकार कहा- एवमस्तु । फिर शुक्राचार्य उन के पुरोहित बनाये गये, जो वैदिक ज्ञान के भण्डार है 1 भगवान् विष्णु, देवताओं सहित इन्द्र, ऋषिसमहू, प्रजापतिगण तथा ब्राह्मणों ने पृथु का (वनबुमार का ) राजा के पद पर अभिषेक किया।
इस प्रकार महाभारस में सामाजिक अनुबन्ध के सिद्धान्त का बड़े विस्तार के साथ वर्णन आ है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में महाभारत तथा दीघनिकाय के समान ही सामाजिक अनुबन्ध के सिद्धान्त का वर्णन मिलता है । कौटिल्य ने भी प्रारम्भ में राजा की नियुक्ति का उल्लेख किया है 1 अर्थशास्त्र में यह वर्णन इस प्रकार मिलता है-"अब प्रजा मात्स्यन्याय से पीड़ित हुई तो उस ने मनु को अपना राजा बनाया। राजा की सेवाओं के उपलक्ष्य में सुवर्ण आदि का दसवां भाग और धन-धान्य का छठा भाग कर के रूप में देने का वचन दिया। इस के उपलक्ष्य में मनु ने प्रजा के कल्याण, रक्षा का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया 17२ महाभारत आदि में ब्रह्मा द्वारा राजा की नियुक्ति का वर्णन है, किन्तु कौटिल्य के अर्थ, स्त्रि में रानी की नियुक्ति ब्रह्मा अथवा विष्णु के द्वारा नहीं बतायी गयी है, अपितु उस में इस प्रकार का वर्णन मिलता है कि प्रजा ने स्वयं ही अपने राजा का निर्वाचन किया।
३. दैवी उत्पत्ति का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार राजा की उत्पत्ति ईदवर द्वारा बतलायो गयी है । यह सिद्धान्त हम को महाभारत, धर्मशास्त्र एवं पुराणों में मिलता है। महाभारत में देवो सिद्धान्त का वर्णन इस प्रकार मिलता है-"देव और नरदेव ( राजा ) दोनों समान हो है ।" अन्यत्र ऐसा उल्लेख मिलता है कि "राजा
१. महार शान्ति ५६, ८७-१९६ । २. कौ० अ० १.१३ मारस्यन्मात्रामिभूताः प्रजा मन वैवस्वत राजान पनि.रे। घायमापण्यपशभाग हिरण्यं चास्य
भागधे प्रतिपंपयामामुः। ३. वत्री, १, १३ ४. महा0 शामिन ५६, १४४
राजा