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प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि लोक में जो धर्म देखा जाता है, उस का मूल कारण राजा ही है। राजा के भय से ही प्रजा एक-दूसरे का भक्षण नहीं करती। राजा ही मर्यादा का उल्लंघन करने वाले तथा अनुचित भोगों में आसक्त रहने वाले सम्पूर्ण जगत् के लोगों को धर्मानुकूल शासन द्वारा प्रसन्न रखता है और स्वयं भी प्रसन्नतापूर्वक रह कर अपने तेज से प्रकाशित होता है। जैसे सूर्य और चन्द्रमा का उदय न होने पर समस्त प्राणी घोर अन्धकार में खूब जाते हैं और एक-दूसरे को देख नहीं पाते हैं, जैसे अल्प जल वाले सरोवर में मत्स्यगण तथा रक्षक रहित उपवन में पक्षियों के झुण्ड परस्पर एक-दूसरे पर निरन्तर आवात करते हुए स्वच्छापूर्वक विचरण करते हैं, वे कभी तो अपने प्रहार से दूसरों को कुचलते और मन्थन करते हुए आगे बढ़ जाते हैं और कभी दूसरों की पोट खाकर ब्याकुल हो उठते हैं। इस प्रकार आपस में लड़ते हए वे थोड़े ही दिनों में नष्ट-भ्रष्ट हो जाते है, इस में सन्देह नहीं है। इसी प्रकार राजा के अभाव में ये सारी प्रजाएं आपस में लड़-सगड़कर बात की बात में नष्ट हो जायेगी और बिना चरवाहे के पशुओं की भांति दु:ख के घोर अन्धकार में डूब जायेंगी।
___ यदि राजा प्रजा को रक्षा न करे तो शक्तिशाली पुरुष दुर्वल मनुष्यों की स्त्रियों तथा पुत्रियों का अपहरण कर लें और अपने घर की रक्षा में प्रयत्नशील मनुष्यों का अन्त कर दें। यदि राजा रक्षा न करे तो इस जगत् में स्त्रो, पुत्र, घम अथवा परिवार कोई भी ऐसा संग्रह सम्भव नहीं हो सकता जिस के लिए कोई कह सके कि यह मेरा है, सब ओर सब की सम्पूर्ण सम्पति का लोप हो जाये । यदि राजा प्रजा का पालन न करे तो पापाचारी लुटेरे सहसा आक्रमण कर के वाहन, वस्त्र, आभूषण और विषिष प्रकार के रल लूट ले जायें। यदि राजा रक्षा न करे तो धर्मात्मा पुरुषों पर बारम्बार माना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को मार पड़े और विवश होकर लोगों को अधर्म का मार्ग ग्रहण करना पड़े । यदि राजा प्रजा का पालन न करे सो दुराचारी मनुष्य माता, पिता, बृद्ध, आचार्य, अतिथि मोर गुरु को क्लेश पहुँचवें अथवा मार डालें। यदि राजा रक्षा न करे तो धनवानों को प्रतिदिन बध या बन्धन का फ्लेश उठाना पड़े और किसी भी वस्त को वे अपना न कह सकें । यदि राजा प्रजा का पालन न करे तो अकाल में ही लोगों की मृत्यु होने लगे, यह समस्त जगत् छाकुओं के अधीन हो जाये, और पाप के कारण घोर नरक में गिर जाये। यदि राजा पालन न करे तो व्यभिचार से किसी को धणा न हो, कृषि नष्ट हो जाये, धर्म ठूब जाये, व्यापार चौपट हो जाये और तीमों वेदों का कहीं पता न चले।
यदि राजा जगत् की रक्षा न करे तो विधिवत् पर्याप्त दक्षिणाओं से युक्त यज्ञों का अनुयन बन्द हो जाये, विवाह म हों और सामाजिक कार्य रुक जायें। यदि राजा पशुओं का पालन न करे सो दूध दही से भरे हुए घड़े कभी मथे न जायें और गौशालाएं नष्ट हो जायें । यदि राजा रक्षा न करे तो सारा जगत् भयभीत, अग्निचित हाहाकारपरायण तथा अमेत्र हो क्षणभर में नष्ट हो जाये । यदि राजा पालन न करे तो उन में
नीविषाक्यामृत में राजनीति