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वि० सं० ९६४ माना है, कम से कम ५२ वर्ष पश्चात् का है । अतः सोमदेव को महेन्द्रपाल का समकालीन मानना तथा उन के आग्रह पर नौतिवाक्यामृत की रचना का होना युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता । यदि महेन्द्रपाल के आग्रह पर नीतिवाक्यामृत को रचना की गयी होती तो उस में कहीं-म-कहीं उन का उल्लेख लेखक अवश्य करता जैसा कि यशस्तिलक की प्रशस्ति में किया है। टीकाकार ने नोतिबाझ्यामत के कर्ता का नाम मुनिचन्द्र तथा उन के गुरु का नाम सोमदेव लिखा है । ठीक इसी प्रकार उन्होंने किसी जनर परीनीशिवायमा दमिता को पवेन्द्रदेव का समकालीन तथा उन के आग्रह पर नीतिवाक्यामृत की रचना की बात लिख दी है।
डॉ . राघवन् नीतिवाक्यामृत को यशस्तिलक के बाद की रचना स्वीकार नहीं करते । इस के अतिरिक्त वे नीतिवाक्यामृत के टीकाकार के कथन की पुष्टि करते हुए लिखते हैं कि टीकाकार ने जिन कान्यकुब्जनरेश महेन्द्र देव के लिए सोमदेव को नीसिवाक्यामृत की रचना के आग्रह का उल्लेख किया है वे उस नाम के महेन्द्रपाल द्वितीय होंगे, जिन का उल्लेख डॉ. त्रिपाठी ने अपने अन्य हिस्ट्री ऑफ़ कन्नौज में किया है । बालकवि रूप में राजेश्वर को महेन्द्रपाल प्रथम ( ८८५-९१० ई.) का संरक्षण प्राप्त था । अन्त में डॉ० राघवन ने लिखा है कि सोमदेव गौड़ देश के गौड़संघ के आचार्य थे और सम्भवतः उन का सम्मान बोध गया के एक राष्ट्रकूट नरेश ने किया था। राष्ट्रकूट करद चालुक्य अरिकेसरी और उस के उत्तराधिकारियों के समय में वे लमलवाड की ओर विहार करने गये थे और कन्नौज को जाते हए वे 'दि और राष्ट्रकूट दरबारों में पहुंचे अथवा लंमुलबार में रहते हुए ही जब कभी उन्हें समय मिलता था ये उपर्युक्त राजदरबारों में भ्रमण कर आते थे । ऐसी अवस्था में यह अनहोनी नहीं कहो जा सकती कि उन्होंने कन्नौज के नरेश महेन्द्रपाल के आग्रह पर नोतिवाक्यामृत को रचना की हो ।'
प्रो० जी० बी० देवस्थली का कथन है कि “दिगम्बर जैन सोमदेव का आविर्भाव दसवीं शताब्दी के मध्य में हुआ। और उन्होंने राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय के राज्य काल में यशस्तिलक चम्पू की रचना शकसंवत् ८८१ ( ९५९६० ) में की। यशस्तिलक की प्रशस्ति के आधार पर सोमदेव को देवसंघ का आचार्य कहा जाता है, किन्तु लैमुलप्राड के दानपत्र में उन के दादागुरु को गोड़संघ का आचार्य बताया गया है। इस के
f. The History and Culture of ludian People, Vol. IV, P.33; .
H.C. Ray... Imynastic History of Northern India, Pul, I, P.572. मियदोनी के शिलालेख में महेन्द्रपालदेव के राध्यकाल की तिथियाँ १०३-४ ई० तथा Es-ई० निर्दिष्ट है । डॉ० आर० एस० त्रिपाठी या डॉ. वीर एन० पुरो महेन्द्रपाल की मृत्यु की तिथि १० ६. मानते हैं। इस प्रकार वे नहपाल का राज्यकाल १०ई० तक निश्चित करते हैं; Dr. K, S, 'Trilithi-History of K:10allj, P. 253;
Dr. Is N. Puri-Tha History of the Gurjurti-Pritilhares. २. डो० वे राधनन्, जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १०, किरण २, पृ० १०२.१०४ ।
नीतिबाक्यामृत में राजनीति