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कामन्दक सप्तांग राज्य का विवेचन करने के उपरान्त लिखते हैं कि राज्य का स्थायित्व कोश तथा नल पर आधारित है और अब राज्य का संचालन बुद्धिमान् मन्त्रियों के परामर्श से किया जाता है तो उस का फल तोन पुरुषार्थों-धर्म, अर्थ और काम की प्रासि होता है। इसलिए राज्य का तात्कालिक उद्देश्य प्रणा को धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति कराना ही है।
आचार्य सोमदेवसूरि ने अपने अन्य में इन पुरुषार्थों की व्याख्या भी की है । उन के अनुसार धर्म यह है जिस से इस लोक में अभ्युदय और परलोक में मोक्ष की प्राप्ति हो (१,१)। अर्थ समुद्देश में आचार्य ने अर्थ की व्याख्या की है। जिस से मनुष्यों के सभी प्रयोजन, लौकिक तथा पारलौकिक, की सिद्धि होती है वह अर्थ है ( २,१) । अतः राज्य का यह कर्तश्य है कि यह ऐसा वातावरण उत्पन्न करे जिस से व्यक्ति व्यापार, कृषि तथा अन्य उद्योग-धन्धों में संलग्न होकर धनार्जन कर सके । घन से हो । प्रजा को लौकिक सुख की प्राप्ति होती है और पारलौकिक सुख का भी वह अत्यन्त महत्वपूर्ण साधन है । धर्म और काम पुरुषार्थ का मूल कारण अर्थ है । अर्थात् बिना अर्थ के धर्म और काम पुरुषायों की प्राप्ति नहीं हो सकती। अतः उत्तम साधनों द्वारा बनार्जन मनुष्य के लिए परम आवश्यक है। राजा का यह कर्तव्य है कि यह प्रजा को धनार्जन करने की पूर्ण सुविधा प्रदान करे। आचार्य स्रोमदेव का मत है कि सम्पत्ति शास्त्र के सिद्धारतों के अनुसार व्यापार आदि साधनों से मनुष्यों को अविद्यमान धन का संचय करना, संचित धन को रक्षा करना और रक्षित धन की वृद्धि करने में प्रयत्नशील रहना चाहिए ( २,३ )
अर्थ अथवा धन भौतिक सुख प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण साधन होने के कारण प्रथम स्थान रखता है। इस बात की पुष्टि में टीकाकार ने हारोत का मत उद्धव किया है । जिस के पास कार्य की उत्तम सिद्धि करने वाला पन विद्यमान है उसे इस लोक में कोई भी वस्तु अप्राप्त नहीं है । उसे सभी इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति हो सकती है । इसलिए मनुष्य को साम, दाम, दण्ड और भेद आदि उपायों से धने अर्जन करना चाहिए । आचार्य कौटिल्य ने भी धर्म, अर्थ, काम आदि पुरुषार्थों में अर्थ को ही प्रधानता दी है और इसे सब का मूल बताया है। आचार्य सोमदेव यह निर्देश देते है कि प्राप्त थन को दान, धर्म, परोपकार आदि श्रेष्ठ कार्यों में व्यय करते रहना चाहिए, जिस से लौकिक सुख के साथ-साप पारलौकिक सुख को भी प्राप्ति हो सके ( ३, २)।
तृतीय पुरुषार्थ काम की प्राप्ति कराना भी राज्य का उद्देश्य है । राज्य को
१.कामन्दक । २. हारीत, नीतित्रा० पृ० २ । असाध्य नाम्हि लोकेऽत्र सत्यार्थसाध परम् । सामादिभिरुपायैश्च तस्मादर्थमुपाजयेत् ॥ ३. कौ० अर्थ१,७।