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स्पष्ट है कि निष्काम धर्म से मोक्ष को भी प्राप्ति होती है। इसलिए यदि धर्म को ही चातुर्वर्ग का मूल कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। वैशेषिक दर्शन के रचयिता महर्षि कणाद का कथन है कि जिस से अभ्युदय एवं लौकिक उन्नति और निःश्रेयस तथा पारलौकिक मोक्ष की प्राप्ति हो वह धर्म है ।'
प्राचीनकाल में धर्म का प्रयोग चातुर्वर्ग के लिए होता था और उस का विभाजन दो भागों में कर दिया गया था कि प्रथम भाग के अन्तगंत धर्म, अर्थ और काम का समावेश था और द्वितीय में मोक्ष का लौकिक धर्म का हो दूसरा नाम पुरुषार्थ और पारलौकिक अर्थात् मोक्ष का नाम परमपुरुषार्थ था । इस कारण धर्म, अर्थ और काम को मानव पुरुषार्थी के नाम से ही पुकारा जाता था । सोमदेवसूरि ने भी अपने अन्य नीतिवाक्यामृत में मानव पुरुषार्थों का वर्णन किया है । ये राजनीति को त्रिपथगामिनी कहते हैं, क्योंकि इस के द्वारा धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थी की प्राप्ति होती है। इसी कारण उन्होंने सर्वप्रथम धर्म, अर्थ और काम रूप फलों के प्रदान करने वाले राज्य को नमस्कार किया है । नोतिज्ञ थे, छतः उन्होंने अपने ग्रन्थ में किसो राजा आदि का को नमस्कार किया । शुक्राचार्य ने भी राज्य को धर्म, अर्थ साधन बतलाया है। उन्होंने अपनी दण्डनीति के प्रारम्भ में ही उस राज्यरूपी वृक्ष को नमस्कार किया है जिस को शाखाएँ षाड्गुण्य ( संवि, विग्रह, यान, आसन, संवय और द्वेषीभाव ) है और जिस के पुष्प साम, दाम, भेद और दण्ड ) हैं तथा फल त्रिवर्ग
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( धर्म, अर्थ, और काम ) हैं |
में
सोमदेव ने धर्म, अर्थ और काम तीनों ही पुरुषार्थी के सेवन का उपदेश दिया है। उन का यह भी आदेश है कि त्रिवर्ग का समरूप से ही सेवन करना चाहिए ( ३, ३ ) । अर्थ को धर्म के समकक्ष स्थान प्रदान कर के आचार्य ने प्राचीन परम्परा एक महान् सुधार किया है। काम को भी धर्म के समकक्ष मानकर उन्होंने व्यायहारिक राजनीतिज्ञता का परिचय दिया है। जैन संन्यासी होते हुए भी उन्होंने अर्थ के महत्त्व का भली-भाँति अनुभव किया है। शत उन की दूरदर्शिता की परिचायक हैं । नीतिवाक्यामृत में धर्म, अर्थ और काम की विशव व्याख्या की गयी है । धर्म की परिभाषा करते हुए आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि जिस से इस लोक में अभ्युदय और परलोक में मोक्ष की प्राप्ति हो वह धर्म है । इस के विपरीत फल वाला अधर्म है
यह
१. कणाद दर्शन
मतोऽभ्युदयनिःश्रेयसरिद्धिः स धर्मः । २०७ ।
अथ धर्मार्थकामफलत्य राज्याय नमः । प्रक, नीतिवाक्यामृत पृ०७।
नमोस्तु राज्याय षण्यास प्रशाखिने । सामाविचारपुष्पा
त्रिवर्ग फलदायिने ।
२६
܆
सोमदेव एक महान् राजयशोगान न कर के राज्य
और काम की प्राप्ति का
नीतिवाक्यामृत में राजनीति