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के अनन्तर की गयी रचना है, जैसा कि अन्य विद्वानों ने भी स्वीकार किया है। इस प्रकार नीतिवाक्यामृत का रचनाकल विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी का तृतीय चरण सिद्ध होता है। निश्चित रूप से इस ग्रन्थ का प्रणयन चालुक्यों के राज्याश्रय में ही हुआ।
नीतिवाक्यभूत का महत्व
नीतिवाक्यमृत संस्कृत वशमय का अमूल्य राजनीति प्रधान ग्रन्थ है। यह भारतीय साहित्य का भूषण है । यद्यपि कोटिल्य के अर्थशास्त्र की अपेक्षा इस का कलेवर न्यून है, तथापि रचना-सौन्दर्य में यह उस से उत्कृष्ट है । यथा नाम तथा गुण वाली कहावत इस ग्रन्थ पर पूर्णरूपेण चरितार्थ होती है । मह अन्य वास्तव में नीति का क्षीरसागर है, जिस में लगभग सभी पूर्वाचार्यों द्वारा प्रतिपादित राजनीतिक सिद्धान्तों का सुमधुर सूत्रों में समावेश है। यह अन्य गद्य में विरचित है और इस के लेखक ने इस की रचना के लिए पति को अपनाया है । (सोमदेव का संस्कृत भाषा पर जैसा अधिकार था वैसा ही रचना शैली पर भी था। बड़ी से बड़ी बात को सूत्र रूप में कहने की कला में सोमदेव बहुत वक्ष थे, और इसी कारण उन्होंने नीतिवाक्यामृत के अध्यायों का नाम समुद्देश रखा है । समस्य ग्रन्थ में बत्तीस समुद्देश एवं पन्द्रह सौ पचास सूत्र है। प्रत्येक समुद्देश में उस के नाम के अनुकूल ही विषय का प्रतिपादन किया गया है।
Catharanामृत की शैली बहुत ही सुबोध, संगत, सुगठित एवं हृदयस्पर्शी हूँ । राजनीति जैसे शुष्क विषय का भी इस ग्रन्थ में काव्य जैसी भाषा में वर्णन किया गया है । इस का प्रत्येक सूत्र हृदयग्राही है । नीतिवाक्यामृत के अज्ञात टीकाकार ने इस के सूत्रों की शुद्ध एवं स्पष्ट व्याख्या की है। प्रत्येक सूत्र में गम्भीर विचार भरे हुए हैं जो हमारे सामने किसी भी विचार का एक पूर्ण चित्र उपस्थित करते हैं ।
प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रधान विषय है राजनीति राज्य एवं शासन व्यवस्था से सम्बन्ध रखने वाली प्रायः सभी आवश्यक बातों का इस ग्रन्थ में विवेचन किया गया है। राज्य के सप्तांग स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोश, बल एवं मित्र के लक्षणों पर पूर्ण प्रकाश डाला गया है। साथ ही राजधर्म की बड़े विस्तार के साथ व्याख्या की गयो है । इस राजनीति प्रधान ग्रन्थ में मानव के जीवन स्तर को समुझत बनाने वाली धर्मनीति, अर्थनीति एवं समाजनीति का भी विशद विवेचन मिलता है | यह ग्रन्थ मानव जीवन का विज्ञान और दर्शन है। यह वास्तव में प्राचीन नोति साहित्य का सारभूत अमृत है। मनुष्यमात्र को अपनी-अपनी मर्यादा में स्थिर रखने वाले राज्यप्रशासन एवं उसे पल्लवित संबंधित एवं सुरक्षित रखने वाले राजनीतिक तत्त्वों का इस में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण किया गया है ।
आचार्य सोमदेव ने नीति के दोनों अंगों - राज्य एवं समाज से सम्बन्ध रखने बाली विविध समस्याओं पर पूर्ण प्रकाश डाला है। राज्य और समाज एक दूसरे के
नीतिवाक्यामृत में राजनीति
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