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ने कोश की परिभाषा इन वादों में को-को सोना, पानी, होरे, जवाहरात तथा अन्य बहुमूल्य रनों से परिपूर्ण हो और राज्य पर आने वाले किसी भी संकट का दोघकाल तक सामना करने में समर्थ हो वह कोश है (२१,१)" आगे आचार्य लिखते है कि कोश, दण्ड और बल ( सेना ) राजा की शक्ति है ( २९, ३८) 1 अतः पृथ्वी की रक्षार्थ इन की उचित व्यवस्था करना भी राजा का परम कर्तव्य है । राजा अकेला इन कार्यों का सम्पादन नहीं कर सकता । इसलिए वह अपनी सहायतार्थ अमात्यों एवं अन्य राजकर्मचारियों की नियुक्ति करता है। सुयोग्य मन्त्रियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति करना भी राजा का एक कर्तव्य है। राज्य की सुरक्षा के लिए उस के चारों ओर सुदृढ़ दुर्गों का निर्माण कराना भी राजा का कर्तव्य है । इन कार्यों के अतिरिक्त राजा द्वारा पाइगुण्य के यथोचित प्रयोग से भी राज्य की रक्षा होती है। पाइगुण्य ( सन्धि, विग्रह. यान, आसन, संश्रय और दूधीभाव ) द्वारा वह शत्रराज्यों का हनन तथा अन्य राज्यों से मंत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करता है, जिस से राज्य की सुरक्षा सुदृढ़ होती है। यह सम्पूर्ण कार्य ऐसे राजा द्वारा ही सम्पन्न हो सकते हैं जो स्वतन्त्र हो और अपने राज्य में संप्रभु हो तथा जिस की याज्ञा का पालन उस राज्य में निवास करने वाले व्यक्ति पूर्णरूपेण करते हों। ऐसा राजा ही स्वतन्त्र राज्यों से मंत्री स्थापित करने में सफल हो सकता है।
राज्य को द्वितीय परिभाषा में आचार्य सोमदेव ने लिखा है कि वश्रिम, धान्य, सुवर्ण, पश, तांबा, लोहा आदि धातुओं से युक्त पृथ्वी को राज्य कहते हैं ( ५,५)। आचार्य द्वारा दी गयी राज्य की यह परिभाषा भी बड़ी सारभित है। इस में राज्य के मल तस्व जनता ( जनसंख्या ) पर विशेष बल दिया गया है। राज्य के लिए जनसंख्या का होना नितान्त आवश्यक है। पशु अथवा पक्षियों के समूह से किसी राज्य की स्थापना नहीं हो सकती । उस के लिए मनुष्यों के सुसंगठित समुदाय का होना आवश्यक है। राज्य में बितनी जनसंख्या होनी चाहिए, इस विषय में विद्वानों में मतभेद है। किन्तु यह बात निश्चित है कि राज्य की जनसंख्या जितनो अधिक होगी और उस में जितने अधिक प्राकृतिक साधन होंगे वह राज्य उतना हो शाक्तिशाली होगा।
___ आचार्य सोमदेवसरि ने राज्य की जनसंख्या कितनी होनी चाहिए इस और कोई संकेत नहीं किया है। किन्तु उन्होंने राज्य के लिए जनता का होना परम आवश्यक बतलाया है। उन्होंने उस जनसमुदाय को वर्णाश्रम से मुक्त होने की आवश्यकता पर बल दिया है । इस · प्रकार सोमदेव ने कर्तव्यनिष्ठ समाज की ओर संकेत किया है।
इस के अतिरिक्त उन्होंने राज्य के लिए प्राकृतिक साधनों का उपलब्ध होना भी आवश्यक बतलाया है। इन साधनों के अभाव में कोई भी राज्य स्थायी नहीं हो सकता। स्थायित्व का होना राज्य का प्रमुख लक्षण है, किन्तु धान्य-सुवर्ण एवं अन्य
गीतिवाक्यामृत में राजनीति