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कई स्थानों पर उल्लेख किया है। दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में उन्होंने सैद्धान्त पैशेषिक, ताकिकवैशेषिक, पाशुपत, कुलाचार्य, सांस्य, वशघलशासन, जैमिनीय, बार्हस्पत्य, चेदान्तबादि, काणाद, तथागत, कापिल, ब्रह्माद्वैतवादि आदि दार्शनिक सिद्धान्तों का अध्ययन किया था। इन के अतिरिक्त सोमदेष के साहित्य में मसंग, भृगु, भर्ग, भरत, गौतम, गर्ग, पिंगल, पुलह, पुलोम, पुलस्ति, पराशर, मरीचि, विरोचन, धूमध्वज, नीलपट, अहिल आदि प्रसिद्ध एवं अप्रसिद्ध आचार्यों के नामों का उल्लेख मिलता है। उन के ऐतिहासिक दृष्टान्त बड़े सजीव है और इस के साथ ही पौराणिक आख्यानों का भी यत्र-तत्र उल्लेख मिलता है।
इन सब पर विचार करने के उगाह पर गहुँनते हैं कि आचार्य सोमदेव का ज्ञान विशाल स्वाध्याय के आधार पर अत्यन्त विस्तृत था । राजनीति के क्षेत्र में भी उन का अपूर्व स्थान है। वे केवल लक्ष्य अन्य के रचयिता ही नहीं थे, अपितु उन्होंने अपनी राजनीति का एक प्रयोगात्मक ग्रन्थ भी लिखा है । नीतिवाक्यामृत यदि नीति का लक्ष्य मन्थ है तो यशस्तिलक उन की राजनीति के प्रयोग का ध्याघहारिक अन्य है। यशोधर महाराज के चरित्र-चित्रण में राजनीति का प्रयोगात्मक विस्तृत विवेचन सोमदेवसूरि को राजनीति के आचार्यत्व को प्रतिष्ठा प्राप्त कराने में पूर्ण समर्थ है इस विषय में सदा स्लिलक का तृतीय आश्वास अवलोकनीय है ।
१. यश०, पा०४, पृ० २३६-३७ । २. वही, पृ० २६९-७० । ३. वही. आ०१. पृ८ २५.२.२१५ ए
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नीतिवाक्यामृत में राजनीति