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के अनुसार राज्य के सातों अंग एक दूसरे से सम्बद्ध है और ये राज्य को एक सजीव इकाई बनाते हैं। रमले मासी के निशाना साइरण देकर यह बताया है कि जिस प्रकार त्रिदण्ड के तीनों दण्डों का महत्त्व एक समान होता है उसी प्रकार राज्य के सातों अंगों में कोई किसी से बड़ा नहीं है। उन में प्रत्येक का अपने स्थान पर महत्व है। जिस प्रकार शरीर के अंग अपना महत्त्व रखते है उसी प्रकार राज्य के सातों बंग अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण है। यदि एक अंग भी विकारग्रस्त हो जाता है प्रो सम्पूर्ण राज्य रूपी शरीर का स्वास्थ्य असन्तोषजनक हो जाता है। अतः राज्य को सदस्य, शाक्तिशाली एवं घोह स्थिति में रखने के लिए उस के सभी अंगों का स्वस्थ होना परम पावश्यक है । यह हो सकता है कि किसी अंग के विकृत होने से समस्त राज्य रूपी शरीर पर उतना प्रभाव न पड़े, परन्तु उस को कार्यक्षमता अवश्य प्रभावित होगी । राज्य रूपी प्राणो के सुचारु रूप से संचालन के लिए यह आवश्यक है कि उस के समी अंग स्वस्थ हों। रुग्ण अंगों से कोई भी प्राणी भली-भांति अपने कार्यों का सम्पादन नहीं कर सकता । राज्य को भी ठीक ऐसी ही स्थिति है । उस के प्रत्येक अंग के कार्य पृथक् अवश्य है, किन्तु वे सभी राज्प रूपी प्राणी के सुख-समृद्धि के लिए कार्य करते है। कामन्दक ने ठीक ही लिखा है कि राज्य के ये अंग एक दूसरे के पुरफ है। यदि राज्य रूपी शरीर का कोई भी अंग विकृत हो जाये तो राज्य का संचालन असम्भव हो जाता है। अत: राज्य रूपी शरीर के भली-भांति संचालन के लिए विकृत अंग का सुधार शीघ्रातिशीन करना चाहिए। राज्यांगों की श्रेष्ठता पर ही राज्य की समृद्धि निर्भर है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्राचीन राजशास्त्र वेत्ताओं ने राज्य के सात अंग बताये है और उन की तुलना मानष शरीर के अंगों से की है। अतः ये विचारक राज्य के सावयव स्वरूप के सिद्धान्त में विश्वास रखते थे । पाश्चात्य देशों में उन्नीसवां शताब्दी में राज्य के सापया स्वरूप के जिस सिद्धान्त का विकास' हा उस के दर्शन भारत में महाभारत काल में ही होते हैं। प्राचीन भारत के लगभग सभी राजशास्त्र वेत्ताओं में राज्य का सप्तांग स्वरूप स्थिर किया है। अंग शब्द तथा आचार्य शक के राज्यांगों के रूपक से राज्य के सावयव स्वरूप के सिद्धान्त की पुष्टि पूर्ण रूप से हो आती है। प्रो भण्डारकर, डॉ० के० पी. जायसवाल, प्रो. बी. के. सरकार' आदि विद्वानों का विचार है कि प्राचीन राजनीतिज्ञों द्वारा राज्य का सात अंगों में विश्लेषण यह प्रकट करता है कि राज्य के सावयव स्वरूप का विचार अथवा राज्य का सावयघ
१. मनु०६. २९६ । २. कामन्दक: ४,२। ३. Bhandarkar-Skime Aspects of Ancient Indian Polity, PP.GG,GB, 7. K. P, Jayaswal - Hindu Polity, l'art ]I, P.9. १.B. K. Sarkar-Fasitive luck ground of Hindu Soriology, Part II, TP.34-39,
नीसिवाक्यामृत में राजनीति