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कोश, दण्ड तथा वन राज्य के सात अंग है। आचार्य कौटिल्य तथा विष्णुधर्मसूत्र में राज्य के अंगों के लिए प्रकृति शब्द का प्रयोग किया गया है। कौटिल्य के अनुसार स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोश, दण्ड और मित्र राज्य की प्रकृतियाँ हैं । विष्णुधर्मसूत्र में जनपद के स्थान पर राष्ट्र शब्द आया है । याज्ञवल्क्य में भी कौटिल्य के समान हो सात मंग बताये गये हैं । * वारद स्मृति में कहा गया है कि राज्य के सात अंग होते हैं, किन्तु इन का पृथक-पृथक उल्लेख नहीं मिलता । शुक्रनीतिसार में राज्योगों का विशद विवेचन है। राज्य को सप्तांग राज्य के नाम से सम्बोधित करते
ऐसी स्थिति में
आचार्य शुक्र लिखते हैं कि स्वामी अमात्य, दण्ड, कोश दुर्ग, राष्ट्र और बल राज्य के सात अंग है।' वे राज्य के उपर्युक्त सात अंगों की तुलना मानव शरीर के अवयवों कोश से करते हैं । राजा राज्य रूपी शरीर का मस्तक हूं और मन्त्री नेत्र, मित्र कान, मुख, बल मन, दुर्ग हाथ, पैर राष्ट्र है। राष्ट्र को उपमा पैरों से इसलिए दी गयी है कि वह राज्य का मूलाधार है । उसी के सहारे राज्य रूपी शरीर स्थिर रहता है । बल को मन के समान बतलाया गया है । शरीर में इन्द्रियों का स्वामी मन है और वही उन्हें किसी कार्य में प्रवृत अथवा निवृत्त करता है। राज्य में यदि बल अथवा सेना न हो तो वह पूर्णतया अरक्षित रहता है और कोई भी कार्य नहीं कर सकता। वह अपने अंगों तक से अपनी आज्ञा का पालन नहीं करा सकता। इसी कारण बल की उपमा मन से दी गयी है। कोश की तुलना मुख से की है। जिस प्रकार मुख द्वारा किया गया भोजन शरीर के समस्त अंगों को शक्ति प्रदान कर उन्हें पुष्ट बनाता है उसी प्रकार राजकोश में धन संचित होने से सभी अंगों की पुष्टि होती है । मन्त्री की उपमा नेत्रों से इसलिए दी गयी है कि राज्य का प्रायः समस्त व्यवहार मन्त्रियों के परामर्श से ही चलता है | मनुष्य पर आक्रमण होने पर सब से पहले उस का हाथ ही प्रहार को रोकने के लिए आगे बढ़ता है। उसी प्रकार राज्य पर जब आक्रमण होता है तो प्रथम प्रहार दुर्ग को ही सहन करना पड़ता है। इसी कारण दुर्ग की तुलना हाथों से की गयी है । कामन्दक भी राज्य के सात अंग मानते हैं । उन के अनुसार स्वामी, अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोश, बल और सुहृद् राज्य के सात अंग हैं।
१. मनु० ६ २६४
स्वाम्यमात्य पर राष्ट्र' कोशदण्डी मुद्वत्तथा ।
प्रकृतया ताः सप्ताङ्ग राज्यमुच्यते ।
२. कौ० अर्थ ६, ९ ॥
む
स्वाम्यमा जनपद दुर्ग कोशदण्ड भित्राणि प्रकृतयः।
प्र. विष्णु धर्मसूत्र ३, २३ ।
मदुर्ग कोशद४२ष्ट्रमित्राणि प्रकृतयः ।
४. या३० ९.१५३ ।
४. नारद० प्रकीर्णक ४
६. ६० ९.६६ ।
७. वही १, ६१-६२ ।
कारक ९, ९६ ।
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नोतिवाक्यामृत में राजनीति