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विशिष्ट स्थान या । देश्या सेवन के दोषों से तथा उन के प्रति व्यवहार सम्बन्धित वृत्त पर लेखक ने अच्छा प्रकाश डाला है। इस सम्बन्ध में नीतिवाययामत के निम्नलिखित वाक्य उधुत किये जा सकते है
१. वेश्या का स्त्री के रूप में रहना, भाड़ का सेवक होना, शुल्क प्रण करना तथा नियोगी मित्र ये चार वस्तुएं अस्थिर हैं ( २८, ३९ )।
२. बेश्याएं धन का अनुभव करतो हैं व्यक्ति का नहीं ( २४, ४५ )। ३. वैश्याओं की आसक्ति प्राय: बन को नष्ट करने वाली होती है ( २४,
४. धनहीन कामदेव में भी वेश्याएं प्रीति नहीं मानती ( २४, ४८।
५. वह पशुओं का भी पशु है जो अपने धन से वेश्याओं को धनवती बनाता है ( २४, ५०)।
६. चित्त विश्रान्ति पर्यन्त वेश्यागमन उचित है सर्वदा नहीं ( २४, ५२)।
७. सुरक्षित वेश्या भी अपगो प्रकृति को नहीं छोडतो ( २४, ५२ ) । स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का उल्लेख
नीतिवाक्यामृत में स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का भी वर्णन किया गया है । इस प्रसंग के कुछ उपयोगी सूत्रों का आश्रय निम्नलिखित है
१. नित्य दन्तघायन न करने वाले को मुखशुद्धि नहीं है ( २५,७)।
२. वेग, व्यायाम, शयन, स्नान, भोजन और स्वच्छन्दवृत्ति ( विहार ) को काल से अतिक्रमित न करें ( २५, १०)।
३. श्रम, स्वेद, आलस्य का दूर होना स्नान का फल है ( २५, २५)। ४. भूखा और प्यासा व्यक्ति कभी तेलमर्दन न करे ( २५, २७ )
५. धूप से सन्तप्त पुरुष को जल में स्नान करना दृष्टि की मन्दता और शिरोव्यथा को उत्पन्न करना है ( २५, २८)।
६. भूख का समय ही भोजन का समय है ( २५, २१)। ७. भूख के समय के अतिक्रम से अन्त में अरुचि और देह को क्षोणता हो जाती
८. मिताहारी ही बहुत खाता है ( २५, ३८)।
९. निरन्तर सेवन की हुई दो ही वस्तुएं सुखदाई होती है-रारस सुन्दर आलाप और ताम्बूल ( २५, ६० )।
१०. अत्यन्त खेद करने से पुरुष अकाल में ही वृद्ध हो जाता है ( २५, ६३ }।') ऐतिहासिक एवं पौराणिक तथ्यों का समावेश
ऐतिहासिक दृष्टान्तों एवं पौराणिक आख्यानों का भी अन्य में यत्र-तत्र उल्लेख हुआ है । जैसे यवनदेश ( यूनान ) में मणिकुण्डला रानी ने अपने पुत्र के राज्य के लिए सोमदेवसूरि और उन का नीतिवाक्यामृत