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अन्योन्याश्रित है । अत: दोनों की ही समस्याओं का समाधाम आवश्यक है, जो कि इस अन्य में उपलब्ध होता है। यदि सोमदेव अपने ग्रन्य में राजनीति से सम्बन्ध रखने वाले विषयों पर ही प्रकाश शलते तो उन का वर्णन एकांगी होता। अतः उन्होंने नोति के दोनों ही अंगों को व्याख्या की है।
समाज की उन्नति में राज्य की जन्मति है और एक शक्तिशाली एवं हीविसम्मत राज्य में ही व्यक्ति त्रिवर्ग के फल का निर्वाध रूप से उपभोग कर सकता है एवं अपनी सर्वांगीण चम्मति करने में समर्थ हो सकता है। इसी बात को दृष्टि में रख कर सोमदेव ने न के साथ समाजिया अपनी रिचा गित : नीतिवाक्यामृत में दिवसानुष्ठान, सदाचार, व्यवहार, विवाह एवं प्रकीर्ण आदि समुद्देशों की रचना इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए की गयी है।
___नोतिवाक्यामृत के टीकाकार ने नोति की दो प्रकार से व्याख्या की है जो इस प्रकार हैं--(१) चारों वर्ण तथा चारों आश्रमों में वर्तमान जनता जिसके द्वारा अपनेअपने सदाचारों में प्रवृत्त की जाती है, उसे मीति कहते है। (२) विजयलक्ष्मी के इच्छुक राजा को जो धर्म, अर्थ, और काम आदि पुरुषार्थी से संयोग करावे उसे नीति कहते है । इस ग्रन्थ को टोकाकार के मतानुसार नीतिवाश्यामृत नामकरण का यह कारण दिया गया है कि इस ग्रन्थ के अमृत तुल्य वाश्यसमह विजयलक्ष्मी के इच्छुक राजा को अनेक राजनीतिक विषयों, सन्धि, विग्रह, यान, आसन आदि में उत्पन्न हुई सन्देह रूप महामूर्छा का विनाश करने वाले हैं, इसलिए इस का नाम नीतिवाक्यामृत रस्ता गया है।
लेखक ने नीति के इन दोनों ही अर्थों को दृष्टि में रखकर इस ग्रन्थ को रचना की है। अपने वर्ण्यविषय पर पूर्णप्रकाश सालने वाला ग्रन्थ ही अपने क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण माना जाता है । राजनीति तथा समाज के प्रमुख अंगों का जो विशद वर्णन नोतिषापामृत में हुवा है उस का सारांश निम्नलिखित हैत्रिवर्ग प्राप्ति का अमोध साधन राज्य
भारतीय धर्मशास्त्र के अनुसार मनुष्यमात्र को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इस चातुर्वर्ग की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए । महर्षि व्यास का कथन है कि धर्म से अर्थ और काम की प्राप्ति होती है। यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाये तो यह
१.तिवाक्यामृत की टोका, पृ०२
नं विजय घोस्त्रिर्गेण संयोजन नीतिः, नीयते व्यवस्थाप्यते स्वेषु र अनु रादाबारेघु चतुर्वर्णाश्रमनमणोलीको यस्यां वा सा नीतिः...।
जाकिलानि बचनरचनाविशेषास्तान्मेवामृतमिवामृत श्रोतृश्रोत्रविबरानबरतामसुन्दरमुखभदोहदाय
तात. राज्ञा मानेकार्थ समुत्पन्नसंमोहमहामु चपिरिहारिवार, नीलामृतमहं व वे-) ३. महाभारत -
धर्मादरच कामश्च स धर्मः किं न सेव्यते । सोमदेवसूरि और उन का नीतिवाक्यामृत