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भरिकेसरी के प्रथम पुत्र थे-राजधानी गंगाधारामें यह काम्प समाप्त हुभा और नीतिवाक्यमृत यशस्तिनक से भी पीछे बना है, क्योंकि नीतिवाक्यामृत को प्रशस्तिमें ग्रन्थम्तो ने अपने को 'परास्विनक' महाकाव्यका कर्ता प्रकट किया है। इससे स्पष्ट विदित होता है कि उक्त प्रशस्ति लिखते समय वे यशस्तिनक को समाप्त कर चुके थे।
दक्षिण के इतिहास से विदित होता है कि उक्त कृष्णराजदेव (तृतीय कृष्ण ) राष्ट्रकूट या राठोर वंश के महाराजा थे और इनका नाम अकालवर्षय।। ये अमोघवर्षे तदीय के पुत्र थे। इनका राज्य काल कम से कम शक संवत् ८६७ से ८६४ (वि० सं० १००२ से १०२६) तक प्रायः निश्चित किया है। ये दक्षिण के सार्वभौम और बड़े प्रतापी राजा थे। इनके अधीन अनेक माण्डलिक या करद राज्य थे। कृष्णराज ने-जैसा कि सोमदेव सरिक यशस्तिलक को प्रशस्ति में लिया है-मिहल, चोज पांड्य और देर राजाओं को युद्ध में परास्त किया था। इसके समय में शान्तिपुराण का कता कनड़ो भाषा का सुप्रसिद्ध जैन कवि 'पान्न' हुआ है, जो कृष्णराजदेव द्वारा 'उभय भाषा कवि चक्रवर्ती' की उपाधि से विभूपित किया गया था ।
राष्ट्रकूटों द्वारा दक्षिण के चालुक्यवंशका सावभौमत्व अपहरण किये जाने के कारण वह निष्प्रभ होगया था। अतः जबतक राष्ट्रकूट सार्वभौम रहे, तब तक चालुक्य उनके प्राज्ञाकारी सामन्त या माएडलिक राजा बनवार रहे, अतः अरिकसरोका पुत्र 'वदित ' ऐसा हो एक सामन्त राजा था, जिसको गंगाधारा मामक राजधानीमें परिवलककी रचना समाप्त हुई है। अरिक तरी के समकालीन कनदो भाषा का सर्वश्रेष्ठ जैन कवि 'पम्प' हुआ है, जिसकी रचना से मुग्ध होकर अरिकेसरी ने नसे धर्मपुर नामका गाँव पारिवारिक में दिया था। उसके बनाये हुए दो अन्य १ आदिपुराणाचम्यू' और २ विक्रमार्जुनापजय' उक्त अन्य शक सं०८६३ (वि० सं०१६ )मे-यशस्तिज्ञक से १८ वर्ष पहिले–ममाप्त हुआ है। इसकी रचना के समय परिकेसरी राज्य करवा था, तब उसके १८ वर्षयाव-प्रर्थात् यशस्तिलक की रचना के समय इसका पत्र सामन्त 'बदिग' राज्य करता होगा, यह प्रमाणित होता है । अतः नीतिवाक्यामृत बालस्य गंशीय अरिकेसरी के पुत्र सामन्त वहिग की प्रेरणा से बनाया गया था, यह निर्णीत है।
उपसंहार-ऐतिहासिक नवीन अनुसन्धान व चिन्तन-आदि पुष्कल परिश्रम व समाश्रित होते है, अतः हम उक्त प्रस्तावना में ग्रन्थ व प्रन्यकता के विषय में ऐतिहासिक दृष्टिकोण से संक्षिप्त प्रकाश दास सके, आशा है कि सहृदय पाठक इसे इसी दृष्टि से पढ़ेंगे। इति शम् #
..... भाद्र शुभ वि० सं००
परा० सा० सेट तोलाराम नथमल, । लादनू (मारवाद)।
-सुन्दरलाल शास्त्री
खम्पादक उक्त प्रस्तावना में प्राचार्य श्री की गय पद्यामिक प्रशस्ति के सिपाय धी. प्रदेश विद्वदूरर्ष ५० नाथूराम जी प्रेमी के 'जैनसाहित्य और इतिहास' का भी आधार लिया है, अत: हम अयप्रेमी जी के प्रभारी है -अनुशारक
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