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२४---इसे तेजस शरीर पुद्गलों से सूक्ष्म होना चाहिये। २५ - इसे वैक्रिय शरीर पुद्गलों से सूक्ष्म होना चाहिये। २६-यह इन्द्रियों द्वारा अग्राह्य है। २७--- यह योगात्मा के साथ समकालीन है। २८-- यह बिना योग के ग्रहण नहीं हो सकती है। २६-यह नोकर्म पुद्गल है, कर्म पुद्गल नहीं है । ३० -- यह पुण्य नहीं है, पाप नहीं है, बंध नहीं है। ३१--यह आत्मप्रयोग से परिणत है ; अतः प्रायोगिक पुद्गल है । ३२- यह कषाय के अन्तर्गत पुद्गल नहीं है ; क्योंकि अकषायी के भी लेश्या होती है लेकिन
यह सकषायी जीव के कषाय से संभवतः अनुरंजित होती है। ३३- यह पारिणामिक भाव है। ३४-- इसका संस्थान अज्ञात है। ३५-देश-बंध-सर्व बंध का लेश्या संबंधी पाठ नहीं है।
भावलेश्या क्या है ? १-भावलेश्या जीवपरिणाम है ( देखें विषयांकन '४१)। २-भावलेश्या अरूपी है । यह अवर्णी, अगंधी, अरसी तथा अस्पी है ( ४२ )। ३-भावलेश्या अगुरुलघु है ( ४.३)। ४-विशुद्धता-अविशुद्धता के तारतम्य की अपेक्षा से इसके असंख्यात स्थान हैं ( .४४)। ५- यह जीवोदय निष्पन्न भाव है ( ४६.१)। ६- आचार्यों के कथनानुसार भावलेश्या क्षय-क्षयोपशम, उपशम भाव भी हैं (४६२)। ७-प्रथम की तीन अधर्मलेश्या कही गई हैं तथा पीछे की तीन धर्मलेश्या कही गई हैं
(पृ० १६)। ८-प्रथम की तीन भावलेश्या दुर्गति की हेतु कही गई हैं तथा पश्चात् की तीन भाव
लेश्या सुगति की हेतु कही गई हैं (पृ० १७)। ह-प्रथम की तीन भावलेश्या अप्रशस्त हैं तथा पश्चात् की तीन भावलेश्या प्रशस्त हैं
(पृ. १६)। १०-प्रथम की तीन भावलेश्या संक्लिष्ट हैं तथा पश्चात् की तीन भावलेश्या असं विलष्ट हैं
(पृ० १७)। ११-परिणाम की अपेक्षा प्रथम की तीन भावलेश्या अविशुद्ध हैं तथा पश्चात् की तीन
भावलेश्या विशुद्ध हैं (पृ० १७) १२-नव पदार्थ में भावलेश्या-जीव, आस्रव, निर्जरा है। १३-आस्रव में योग आस्रव है। १४-निर्जरा में कौन-सी निर्जरा होनी चाहिए ? १५-शुभ योग के समय में शुभलेश्या होनी चाहिये या विशुद्धमान लेश्या होनी चाहिए। १६-अशुभ योग के समय में अशुभलेश्या होनी चाहिये या संक्लिष्टमान लेश्या होनी चाहिए। १७.--जो जीव सयोगी है वह नियमतः सलेशी है तथा जो जीव सलेशी है वह नियमतः सयोगी है।
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