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व्यावहारिक जीवन में-कर्म-सिद्धान्त की उपयोगिता ३५ से कर्मसिद्धान्त के अनुसार चलकर अहिंसादि का पालन यथायोग्यरूप से अपनी मर्यादा में रहते हुए कर सकता है। उसके जीवन में अनासक्ति, समता, दया, क्षमा, सहिष्णुता, कषायोपशान्ति आदि गुण सहज ही पनप सकते हैं; क्योंकि कर्मसिद्धान्त आम्नव और बंध से बचने तथा संवर और निर्जरा के अनुसार चलने का सन्देश देता है। ___ आशय यह है कि कर्म-जलयुक्त सरिता में एक ओर से कर्मों के आम्नवरूपी बाढ़ को आम्नवनिरोधक संवर से रोके तथा दूसरी ओर कर्म जल-परिपूर्ण सरिता में जन्म-जन्मान्तर में बद्ध पाप-कर्मरूपी कीचड़ और दलदल को पुरातन कर्मक्षयरूप निर्जरा से उलीचकर बाहर निकाले ऐसा करने से व्यक्ति कर्मसिद्धान्तरूपी दिशादर्शक के सहारे अपनी जीवन-नैया को सही सलामत उस पार ले जा सकता है। आचारांग सूत्र में स्पष्ट बताया गया है कि जो व्यक्ति पापकर्मों (रूपी कीचड़) से निवृत्त हैं, वे निदानरहित कहे गए हैं।' अर्थात्-संसार के कामभोगों के दल-दल में वे अपनी जीवन-नौका को नहीं फँसाते। कर्म-सिद्धान्त के अनुसार व्यवहार ही जैनकर्मविज्ञान की महत्ता
वस्तुतः वर्तमान युग के अधिकांश मानव कर्म-सिद्धान्त की बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं किन्तु वे कर्मसिद्धान्त को स्वीकार करके उसके अनुसार चलते नहीं है। कर्मविज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है- “अच्छे कर्मों के अच्छे फल होते हैं और बुरे कर्मों के फल बुरे। यह सूत्र जीवन को नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत बनाने का आधार बनता है। - जब मनुष्य की यह धारणा पक्की हो जाती है कि बुरे कर्मों का बुरा फल मिलता है, तब उसे बुराई से बचने की प्रेरणा मिलती है। ___ प्रश्न होता है-भारत में कर्मविज्ञान के इस सूत्र को स्वीकार करके चलने वाले कितने हैं ? अधिकांश लोग तो कर्मविज्ञान के इस और ऐसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त सूत्रों को मौखिक रूप से ही स्वीकार कर लेते हैं और जहाँ आचरण का सवाल आता है, वहाँ वे दार्शनिक बनकर व्याख्यान झाड़ने लगते हैं कि-"यह तो सिद्धान्त है, आदर्श है, यह क्या व्यवहार में आ सकता है ? इस सिद्धान्त पर चलने लगें तो जीना दूभर हो जाए।"
परन्तु कर्मविज्ञान के इन सिद्धान्त-सूत्रों को मौखिक रूप से मानकर भी ऐसे लोग जब पाप कर्म-बुरे कर्म करने पर उतारू हो जाते हैं और जब बुरे कर्मों का बुरा फल
-आचारांग श्रु.१,अ.८,उ.१
१. जेणिब्बुया पावेहिं कम्मेहिं, अणियाणा ते वियाहिया। २. सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला हवंति,
दुच्चिण्णा कम्मा दुच्चिण्णा फला हवंति।
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