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पच्चखाण करे तो संवर ( ३ ) प्रमाद नहीं करे तो संवर (४) कषाय नहीं करे तो संवर एवं (५) शुभ योग वर्ते तो संघर। उत्तर भेद २० प्रकार से :
(१) सम्यक्त्व - जिन प्ररूपित तत्त्व में श्रद्धा रखना | (२) विरति - व्रत प्रत्याख्यान (३) अप्रमत्तता - प्रमाद का त्याग (४) कषाय का त्याग (५) अयोगता - अशुभ योग का त्याग (६) जीवों की दया पालना (७) सत्य वचन बोलना (८) अदत्तादान (चोरी) का त्याग करना ( ९ ) ब्रह्मचर्य पालना (१०) परिग्रह - ममता का त्याग करना (११) श्रोत्रेन्द्रिय को वश में करना करना (१२) (१२) चक्षुन्द्रिय को वश में करना (१३) घ्राणेन्द्रिय को वश में करना (१४) रसनाइन्द्रिय को वश में करना करना (१५) स्पर्शेन्द्रिय को वश में करना (१६) मन को वश में करना ( १७ ) वचन को वश में करना (१८) काया को वश में करना (१९) भण्डोपकरणों ( वस्त्रादि सामग्री) को यतना पूर्वक उठाना और रखना (२०) सूई कुसग्ग में यतना करना अर्थात् सूई और तिनका जैसी छोटी सी वस्तु भी यतना से लेना और रखना । निर्जरा तत्व के दो भेद - १ - द्रव्य निर्जरा २- भाव निर्जरा उत्तर भेद १२:- १. अनशन - उपवासादि तप करना ।
२. उनोदरी - आयंबिल, एकासनादि तप अर्थात् भूख से न्यून आहार करना । ३. भीक्षाचरी - याचना (मांग) करना ।