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( १६ ) अब बन्ध की अपेक्षा से कहते हैं, कपाय युक्त जीव समय समय पर पुण्य और पाप दोनों का बन्धन करता है । परन्तु ऐसा जीव कोई नहीं है जो केवल पाप का वन्धन करता है अथवा केवल पुण्य का बन्धन करता है। छठे सातवें गुण स्थान में चौदह पूर्व के जानकार ज्ञान के स्वामी शुक्ल लेश्या वाले साधु सर्वार्थ सिद्ध विमान का आयुष्य वन्धन करता है, परन्तु शुभ कमों को मात्रा बंधन में अधिक होने से शुभ बंध कहा जाता है अथवा कृष्ण लेशी दुट अध्यव्यवसाय से संक्लेश में मिथ्या दृष्टि जीव सातवीं नरक का आयुष्य बंधन करता है , उस समय में भी पञ्चेन्द्रिय जाति, त्रस नाम इत्यादि शुभ प्रकृति का चंध भी होता है परन्तु बहलता से अर्थात अधिकता से पाप का गंध कहा जाता है। ये उत्कृष्ट भांगे कहे, इसी प्रकार सर्वत्र मध्यम भांगे भी जानने चाहिये।
___ यहाँ कोई अज्ञान ग्रसित मनुष्य कदाचित् इस प्रकार कहे कि पुण्य और पाप इन दोनों का एक समय में बंधन नहीं होता जिस प्रकार धूप और छॉह ये दोनों सम्मिलित नहीं होते उसी प्रकार पुण्य और पाप का वन्ध. एक साथ नहीं हो सकता । उसका उत्तर इस प्रकार है कि संपराय बंध में एक बंध होता है या दो अथवा किस समय में जीव के एक बन्ध होता है यह समझायें ? देव