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( २५)
चौथा दंडक द्वार - दण्डक की दृष्टि से दण्डक रहित
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पांचवा प्राण द्वार - प्राण की दृष्टि से प्राण सहित । प्राण के दो भेद - द्रव्यप्राण एवं भाव प्राण | भाव प्राण सब जीवों में चार होते हैं । वे इस प्रकार हैं—– (१) ज्ञान, (२) वीर्य, (३) जीवत्व और (४) सुख ।
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मिद्धों में शुद्ध चेतना केवल ज्ञान रूप ज्ञान प्राण है । वीर्य प्राण से अनन्त किरण वीर्य है । जीवत्व दृष्टि से जीव सदा काल शाश्वत है । सुख की दृष्टि से निराबाध सुख है, इस प्रकार सिद्धों के ये चार भाव प्राण होते हैं ।
इन मूल भाव प्राणों के उत्तर प्राण १० होते हैं वे द्रव्य प्राण कहलाते हैं ।
(१) संसारी जीवों के अनन्त केवल ज्ञान तो नहीं है परन्तु मति ज्ञान की चेतना रूप पांच इन्द्रियां होती है । उन्हीं के द्वारा सब वस्तुओं की जानकारी करता है । इस कारण से ज्ञान प्राण के पांच भेद हुए । (२) वीर्य से वह अनन्त वीर्य अन्तराय कर्म क्षय रूप वीर्य नहीं हैं परन्तु वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से तीन योग की शक्ति प्रकट हुई, अतः वीर्य प्राण के तीन भेद हुए | (३) जीवत्व - वह सदा काल जीवत्व तो नहीं परंतु आयुष्य बंधन करके जितने समय के लिए जीवित रहता है वह जीवत्व प्राण |
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