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(१७५) पाप परमाणुओं को छोड़ना। ध्रुव शाश्वत है ४ । आश्रव की उत्पत्ति नये परमाणु आना, मिथ्यात्व रूप में परिणमन होना तथा योगों की प्रवृत्ति यह व्यय, पूर्व संचित मिथ्यात्व आदि क्षय किये तथा अशुभ भाव रोके यह ध्रुव शाश्वत ५ । संवर की उत्पत्ति समकित आदि निवृत्ति भाव ग्रहण किये, व्यय-आश्रव में प्रवृत्ति करना तथा काल का कहना, ध्रुव शाश्वत क्षायक समकित आदि तथा जितने समय अन्य समकितादि रहे यह अनेक जीवों की अपेक्षा ६। निर्जरा की उत्पत्ति तप करना, व्यय तप छोड़ना, तथा नये कर्म वांधना, अथवा मुक्ति जाना । ध्रुव ऐसे ही ७ । बंध की उत्पत्ति शुभाशुभ योग आदि सेवन करना परमाणु ग्रहण कर कर्म रूप में परिणमन करना । व्यय बंधे हुए कर्मों का निर्जरित होना अर्थात् छूटना, ध्रुव शाश्वत है ८। मोक्ष की उत्पत्ति कर्मों का क्षय, व्यय कर्म तथा ज्ञानादि नाश हो। ध्रुव से शाश्वत । सिद्धों के पर्याय की अपेक्षा उत्पत्ति व्यय है । अपने पर्याय की उत्पत्ति व्यय नहीं है, से सब जो जो नये भाव उत्पन्न होवे वह उत्पत्ति, पहिले
जोड़े वह व्यय है, जैसे ही रहे वह ध्रुव, तथा दूसरी अपेक्षा से ज्ञान की उत्पत्ति-वह-ज्ञान, व्यय अज्ञान । ध्रुव अपने भाव में रहना शाश्वत इत्यादि. ९ ।
* इति उत्पत्ति, व्यय, ध्रुव द्वार समाप्तम् *