________________
(१८३)
पुत्र पर है वह भी कपाय दूसरा राग अरिहंत, साधु, श्रवक, धर्म, दया, शील, सत्य संतोष, क्षमा तथा जीव के उद्धार करने के प्रति है. ये दोनों राग समान कैसे हो सकते हैं ? श्री आवश्यक सूत्र में भी धर्म का राग तो प्रशस्त कहा है, फिर भगवान ने गोशाला को बचाया वह भी सरागपन से बचाया कहा है । अतः उस रागपन में पाप होवे तो वीतराग को होवे, यदि राग बिना बचाया तो गोशाला ने दो साधुओं को जलाया, उसे कैसे बचाया ९ इस कारण से जीव दया ऊपर राग होवे, उसमें पाप, पुण्य का बन्ध है, शुभ आश्रव बताया है। श्री उत्तराध्ययन सूत्र के बत्तीसवें अध्याय की ७वीं गाथा में कहा है, 'रागोय दोसो विय कम्मं वीयं' इति वचनात् । राग द्वेष दोनों कर्म के बीज है । राग द्वेष बिना कर्म नहीं बांधता है । यदि राग द्वेष में एकान्त पाप होवे तो पाप का बीज राग द्वेष है, पर पुण्य का बीज कौन है ? पुण्य का बीज भी कपाय ही बताया है, जैसे 'संसार भओ विग्गाभिया, जम्मणा मरणाणं' इस भय को शुभ बनाया है, तथा श्री उववाइ सूत्र में स्थविर भगवंत सूत्र पढकर मत्त मातंग के समान रमण करते हैं। तथा श्री उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीसवें अध्याय की २५०वीं गाथा में रमिज्जा संजमे मुणी' इस रीति से भी शुभ जाने तथा दूसरे 'अठिमिज्जा