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(२०१) संबर ही ग्रहण करने योग्य है। तथा एक अपेक्षा से सिद्धत्व अर्थात् मोक्ष ही ग्रहण करने योग्य है क्योंकि विशुद्ध नय में जीव के गुण केवल ज्ञानादि ही ग्रहण करने योग्य है, निश्चय में एक जीव ही है। दूसरा कोई नहीं है, उनमें पुण्य, पाप, आश्रय तथा बंध ये चार एक है, अनात्मा रूपी अजीव हेय है अनाज्ञा कर्म अनित्य प्रकृति उदय, नित्य अशुद्ध जीव को मेला करने का स्वभाव है। इसलिए अजीव के पर्याय कहलाते हैं । संवर, निर्जरा व मोक्ष ये तीन एक हैं, आत्मा रूपी अरूपी जीव उपादेय, आज्ञा, कर्म अप्रकृति, उपशम, क्षयोपशम, क्षायिक भाव, शुद्ध जीव को उज्ज्वल करने का स्वभाव है, जीव के गुण पर्याय है । जीव के पर्याय जीव स्वरुपी है, औपचारिक अनेक नय है।
॥ इति हेय, ज्ञेय, उपादेय द्वार समाप्तम् ।।
ये नौ तत्व पर चौवीस द्वार बताये हैं, इनमें जीव तथा अजीव ये दो तो मूल द्रव्य है तथा सात इनके पर्याय है। इन नौ पदार्थ का जानपना तथा इस पर श्रद्धा को समकित कहते हैं, क्योंकि श्री उचराध्ययन सूत्र के अट्ठाइसवें अध्याय में इन नौ तत्त्व के जानने को श्रद्धा समकित कहा है। यहां कोई कहे कि नौ तत्त्व जाने विना समकित नहीं आवे । इसका उचर है कि समकित तो देव, गुरु, धर्म की श्रद्धा