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(२००) बढ़ता है इसलिए संवर निवृत्ति भाव का त्याग नहीं होता है ६ । निर्जरा ग्रहण करने योग्य है, कर्म क्षय होने के
पश्चात् निर्जरने योग्य कर्म पुद्गल नहीं हैं तथापि निजरा ___ का गुण तो विद्यमान ही है । कर्म विना किस की निर्जरा __करे ? जहां वेदन है वहां निर्जरा है। पहले समय वेदे,
दूसरे समय निर्जरा करे । इसी वास्ते सिद्धों में वेदना नहीं है, वैसे ही निजैरा भी नहीं है ७ । बंध के दो भेद आश्रव के समान अशुभ होवे, शुभ व्यवहार में होवे एवं उपादेय निश्चय में होवे ८ । मोक्ष ग्रहण करने योग्य है, कर्मों का क्षय करना (छोड़ना) मोक्ष है । क्षय होने के पश्चात् मोक्ष नहीं है क्योंकि कर्मों के विना किसका क्षय (छोड़े) करे।
एक अपेक्षा से नौ पदार्थ का परिचय बताते हैं। व्यवहार नय में १-जीव, २-अजीव, ३-पुण्य, ४--पुण्य आश्रव, ५-पुण्य बंध ये पांच ज्ञेय पदार्थ है। इनमें ज्ञेय पदार्थ भी है, उपादेय भी है, १-पाप, २-पाप आश्रय, ३-पाप बंध ये तीन हेय अर्थात् छोड़ने योग्य है । १-संवर २-निर्जरा, ३-मोक्ष ये तीन ग्रहण करने योग्य है । निश्चय नय में जीव अजीव जानने योग्य है, पुण्य छूटता है, अतः यह भी जानने योग्य है । पाप, आश्रय एवं बंध ये तीन तत्त्व छोड़ने योग्य हैं, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष ये तीन तत्त्व ग्रहण करने योग्य है तथा एक अपेक्षा से केवल