Book Title: Jain Tattva Shodhak Granth
Author(s): Tikamdasmuni, Madansinh Kummat
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura

View full book text
Previous | Next

Page 225
________________ (२०३ माना जाय तो समकित विना आप आहार पानी सामिल कैसे करते हो ? आपकी मान्यतानुसार साधुपन कैसे रहेगा। फिर अर्जुन माली, अतिमुक्तकुमार, गजसुखमाल आदि जिस दिन समझे थे उसी दिन संयम लिया उन्होंने नौतत्त्व कब सीखे ? फिर यदि नौ तत्त्व सीखने से ही सम्यक्त्व आती है तब तो नौतत्त्व अन्य मति बहुत सीखते हैं। उन सब के समकित क्यों नहीं मानते ? फिर समकित सोने की मुद्रिका है, एवं नौ तत्त्व तो रत्न समान है | यदि मुद्रिका में रत्न जड़े तो विशेष शोभायमान होता है और यदि रत्न का योग नहीं मिले तो मुद्रिका तो शोभा प्राप्त करेगी ही वैसे ही नौ तत्त्व सीखने से विशेष शोभा पावे, और यदि नौ तत्व नहीं सीखा होवे तो भी समकित तो रहेगी ही । फिर श्री भगवती सूत्र के पहिले शतक के तीसरे उद्देश्य में कहा है कि "तमेवसच्चं निस्संके, जं.जिणेहिं पवेडई" जो भगवान ने फरमाया वह सत्य है। ऐसा विचारे तो आज्ञा का आराधक होता है। फिर श्री नीतत्त्व प्रकरण में कहा है कि "जिवाइ नव पयत्थे, जो जाणइ तस्स होइ सम्मतं । भावेण सद्दहतो, अयाण माणोवि सम्मतं ।।१।। जीवादि नौ तत्त्व (पदार्थ) का जानकार हो उन्हें समकित होती है, परन्तु जीव अजीव इत्यादि पदार्थों के स्वरुप का भाव करके श्रद्धा न करे तो व्यवहार में नौ तत्त्व को नहीं

Loading...

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229