Book Title: Jain Tattva Shodhak Granth
Author(s): Tikamdasmuni, Madansinh Kummat
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura

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Page 224
________________ (२०२) __ में है तथा नौ तत्त्व तो विशेप ज्ञान है। श्री उत्तराध्ययन सूत्र के अट्ठाइसवें अध्याय में दस प्रकार की रुचि कही है । इसमें नौवीं संक्षेप रुचि कही है । जिसने पर पाखण्डी का __ मत धारण नहीं किया, जैन मार्ग का जानकार नहीं, उसको धर्म सुनने से तत्काल संक्षेप रुचि समकित प्राप्त होती है । उसने नौ तत्त्व कव सीखे थे ? फिर श्री उत्तराध्ययन सूत्र के दूसरे अध्याय में कहा है कि साधु को कोई जीवादि पदार्थ पूछे और नहीं आवे तो आर्तध्यान नहीं करे। फिर श्री भगवती सूत्र के दूसरे शतक के पांचवें उद्देश्य में तथा ठाणांग सूत्र के तीसरे ठाणे में कहा है कि साधु की सेवा करने से दस बोल की प्राप्ति होती है, उसमें पहिले बोले मूत्र सुनने से, दूसरे बोले ज्ञान अर्थात् श्रद्धा सम्यक्त्व रूप ज्ञान __ यावे, तीसरे बोले विज्ञान आवे, इस प्रकार पहिले श्रद्वा आती है फिर नौ तत्त्वादि विशिष्ट ज्ञान सीखता है। फिर असोचा केवली के लिये श्री भगवती सूत्र के नौवे शतक के तेतीसवे उद्देश्य में कहा है कि कथंचित् प्रकार से जीवा जीवादिक का ज्ञान होने से पाखंडी, सारंभी, सपरिग्रह जानने से साधु की प्रतीति होने से समंकित आती है । उन्हें समकित प्राप्त हुई तब नवतत्व कहां सीखे थे ?' .फिर आज समकित ___पाकर आज ही साधुपन लिया वह जीव छः महिने में प्रति___ क्रमण सीखता है और फिर नौतत्त्व सीखता है, यदि ऐसा

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