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(१८१) राग द्वेष रहा उसी के प्रताप से देवता में उत्पन्न होते हैं, इस न्याय से ठीक है। जैसे कोई पुरुष पन्द्रह कोस दूर ग्राम की ओर चला, जाते हुए दस कोस पर थक गया, तब वहीं रात रहा, तो वह पुरुष किसके प्रताप से गया तथा रहा ? वह थकने के प्रताप से रहा, आगे नहीं जा सका, ऐसे ही पूर्व संयम तप के कारण से देवलोक गया तथा राग द्वेष के प्रताप से देवलोक में रहा आगे नहीं जा सका, तथा एक नय से कषाय के प्रताप से देवतापन में उत्पन्न होते हैं, वह कषाय शुभ दिखती है, क्योंकि श्री ठाणांग सूत्र के दूसरे ठाणे में नारकी का शरीर राग द्वेष से उत्पन्न हुआ कहा है, ऐसे ही वैमानिक पर्यन्त तथा चौथे ठाणे में चौवीस दण्डक के शरीर चार कषाय से उत्पन्न हुए कहा, इस अपेक्षा से नारकी का शरीर अशा कषाय से उत्पन्न हुआ दिखता है तथा वैमानिक का शरीर शुभ कषाय से उत्पन्न हुआ दिखता है, क्योंकि अशुभ कषाय से देवता म कसे जावे ? परन्तु यहां तो
पाय से उत्पन्न हुआ कहा है, तुगिया नगरी के अधिकार में सराग से देवगति कही है, फिर कर्म ग्रंथ में भी नों की प्रकृतियों का कारण कषाय है । कषाय से ही ति है, अच्छा बुरा रस पड़ता है, यशुभ कषाय से
प्रकति का अशुभ रस पड़ता है, शुभ कषाय से शभ ति का शुभ रस पड़ता है.। मूत्र में चार कपाय का