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(१८०) उववज्जति ४ । इस प्रकार भिन्न २ चार उत्तर फरमाये हैं । साधु अमत्य नहीं बोलते हैं फिर चार उत्तर कैसे बताये। ये चारों ही उत्तर सत्य है। भगवान ने गोतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में स्वीकार किया है । इसलिये ये चारों उत्तर भिन्न २ अपेक्षा से हैं । पूर्व के दो पाठ तो व्यवहार की अपेक्षा से है। ऊपर के दो पाठ निश्चय की अपेक्षा से है, कैसे ? पूर्व संयम, पूर्व तप कहा है, पर संयम तप ऐसा नहीं कहा, इसका कारण यह है कि, पूर्व संयम अर्थात् सगग मंयम, तथा सराग तप के प्रभाव से देवता में उत्पन्न होते हैं, पर वीतरागी संयम वाला देवगति का आयुष्य नहीं बांधते हैं । सरागपन से संयम का वेदन नहीं किया. संयम से अशुभ कर्म रोके फिर पूंजते समय परटते समय यत्ना की वह संयम है, पांच समिति भी संयम है, उनमें शुभ योग की प्रवृत्ति हुई वह शुभ आश्रव है, उससे दंवगति का शुभ बंध होता है। इस कारण से पूर्व संयम से देवगति में जाते हैं, ऐसे ही पूर्व तप से भी देवगति में जाते हैं। यह व्यवहार नय का वचन है, तीसरा पाठ कर्म के प्रताप से उत्पन्न होते हैं, 'संगीयाए मराग' यह सगग लेश्या मोह के प्रताप से उत्पन्न होती है, मोह के प्रताप से देवता में कैसे उत्पन्न होते हैं ? क्योंकि सर्वथा गग द्वप क्षय हो जाते तो मोक्ष जाते, पर