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(१६१) कहे तो विराधनी नहीं तो आराधनी । क्योंकि श्री पन्नवणा सूत्र के ग्यारहवें भापा पद में साधु को चार भाषा बोलते हुए आराधक कहा है। इसलिए प्रपचन की प्रभावना के लिए गुरु आदि के दोप गोपन के लिए झूठ बोलने पर भी दोप नहीं, ऐसे कहने वाले को झूठ का स्थापक कहें। यदि भगवान की झूठ बोलने की आज्ञा है ? झूठ बोलने से पाप नहीं है, तो फिर देव, गुरु संघ के लिए को गई हिंसा का भी पाप नहीं है । देव, गुरु, संघ के लिए चक्रवर्ती की सेना का नाश करे तो भी पाप नहीं है परन्तु यहां पाप कैसे मानते हो ? यहां कोई कहे कि श्री भगवती सूत्र के पांचवें शतक के छठे उद्देश्य में मग बचाने के लिए असत्य बोला उसे द्रव्य कैसे कहा ? ऐसे कहने वाले हो कि उसके दया के परिणाम है इस कारण तीव झठ नहीं है इसी अपेक्षा से द्रव्य कहा है पर भाव का
नहीं होवे तो आप ज्ञेय पदार्थ कैसे छोड़ते हो ?
ऐसी भाषा क्यों नहीं बोलते ? तब कहे कि साध का कल्प नहीं है, यदि साधु का कल्प नहीं है तो साधु को पाप लगे पर गृहस्थी को नहीं लगे तो क्या साधु को पाप लगा है ? यहां कोई कहे कि साधु ऐनी भाषा बोले तो पाप नहीं, क्योंकि श्री आचारांग सूत्र के दूसरे श्रुनस्कन्ध के तीसरे अध्याय में कहा है कि साधु को गृहस्थ पूछे तो