Book Title: Jain Tattva Shodhak Granth
Author(s): Tikamdasmuni, Madansinh Kummat
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura

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Page 219
________________ (१६७) रूप सीढियां ग्रहण करने योग्य है किन्तु चवदहवें गुण स्थान के अन्तिम समय में छूट जाता है। जैसे राजा के साथ परिषदा रहती है. वह परिषदा राजा के महल में प्रवेश करते समय पीछे रह जाती है परन्तु साथ नहीं आती है इसी प्रकार पुण्य महज में छूट जाता है, फिर पाप मेल समान है. अतः पुण्य रूप पानी तथा साबुन से धोने पर आत्मा उज्ज्वल होगी। उज्ज्वल होने पर सावुन व पानी के समान पुण्य को निचोड कर निकाल देवेंगे। जहां तक पाप रूप चोर का भय है, वहां तक पुण्य रूप बोलाऊ अर्थात् रक्षक माथ लेने योग्य है तथा भय मिटने के पश्चात् रक्षक का काम नहीं है, ऐसे ही पाप मिटने पर पुण्य का काम नहीं है, इस कारण से पुण्य ग्रहण करने योग्य है, तथा छूटने वाला भी है। कोई कहते हैं कि पुण्य की इच्छा नहीं करनी चाहिये यह भी एकान्त नहीं मिलता है, पुण्य की करणी अर्थात भाव पण्य की इच्छा करना कहा है तथा सुपात्र के लिए कहा है कि 'विपेसेणं जीवे धम्म कामए, मोक्ख कामए" इति । धर्म पुण्य, स्वर्ग मोक्ष की इच्छा करे तो देव लोक में जावे. परन्तु पुण्य के परमाणु द्रव्य पुण्य की इच्छा नहीं हो। पण्य के फल ऋद्धि संपति मिलने इत्यादि के करे । करे तो सरागी पन है । गेहे पैदा होने पर घास

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