Book Title: Jain Tattva Shodhak Granth
Author(s): Tikamdasmuni, Madansinh Kummat
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura

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Page 214
________________ (१६२) जानता हुआ भी मैं नहीं जानता ऐसा कहे। ऐसे कहने वाले को ऐसा कहे तो झूठ बोलने की भगवान की आज्ञा है तो हिंसा, चोरी, मैथुन आदि अट्ठारह पाप की भी आज्ञा होगी । यदि दूसरे पाप की आज्ञा नहीं है तो झूठ की भी नहीं है फिर आचारांग का अर्थ मिथ्या करता है। किसी स्थान पर लिखा होगा तो भी गलत है। अधिक प्रतियों में तो ऐसा नहीं है कि यदि जानता है तो भी मै जानता हूँ ऐसा नहीं कहे । ऐसे पहला व दुसरा दोनों व्रत पाले, वीतराग का उपदेश तो जीव रक्षा के लिए भी झूठ नहीं बोलने का है । इस कारण विचार कर बोले अथवा मौन रखे, वह अर्थ शुद्ध है, पर ज्ञेय पदार्थ में आज्ञा नहीं देवे । ___यहां कोई कहे कि शेय पदार्थ की आना नहीं देवे यह साधु का कल्प है, पर इस करणी में पाप नहीं है उन्हें ऐसा कहें कि कल्प नहीं इस कारण से धर्म भी नहीं । यदि धर्म होता तो आज्ञा देते, इमलिए दान में धर्म है तो गृहस्थ को दान देने की साधु आज्ञा देते हैं तथा उठने बैठने की आज्ञा नहीं देते क्योंकि गृहस्थ का कर्तव्य अत्रत में है, इस कारण लब्ध वीर्य में तो अव्रत है, तथा करण वीर्य में विनय आदि धर्म करणी है। फिर वन्दन करते समय सूर्याभ को भगवान ने आज्ञा दी। नाटक के समय ज्ञेय जानकर मौन रखा । इसीलिए आज्ञा नहीं देवे, कई तो

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