Book Title: Jain Tattva Shodhak Granth
Author(s): Tikamdasmuni, Madansinh Kummat
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura

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Page 201
________________ (१७६) ४० वें सूत्र हैं करते हैं । श्री उत्तराध्ययन सूत्र के उन्नतीसवें अध्याय के में कहा है कि 'भत पच्चक्खाणं अगायं भव समाई निरुंभ' इति वचनात् । इस कारण से संवर की करणी करते हुए पाप छोड़कर ६ पदार्थ उत्पन्न होते अतः उस समय कषायादि से पाप भी है । परन्तु संवर की करनी से केवल आते हुए कर्मों को रोकते हैं । पुराने टूटते हैं वे निर्जरा से, बंधन करे वह शुभ आश्रव से पर संवर का तो कर्म रोकने का ही स्वभाव है । श्री । उत्तराध्ययन सूत्र के उन्नतीसवें अध्याय में कहा है किं " संजमेणं अणण्हत्तं जणय तवेणं वोदाणं जणय ।" फिर श्री भगवती सूत्र के दूसरे शतक के पांचवें उद्देश्य में तुरंगिया नगरी के श्रावकों ने पार्श्वनाथ भगवान के संतों सं कि संयम और तप का क्या फल है ? तब स्थविर मुनि ने कहा 'संजेमण अज्जो ! अणण्हय फले, तेवणं वोदाणं फले ।' 'तब श्रावकों ने पूछा कि देवलोक में कैसे जाते हैं ? इस पर कालिय पुत्र स्थविर मुनि ने कहा " पुन्त्र तवेणं अज्जो देवा देवलोएसु उववज्जंति १ । इधर महिल स्थविर ने कहा 'पुत्र संजमेणं अज्जो देवा देवलोएसु उबवज्र्ज्जति २ ।' तब आनन्द रक्षित स्थविर ने कहा 'कम्मियाए अज्जो ! देवा देवलोएमु उबवज्जंति ३।' इस पर काश्यप स्थविर मुनि ने कहा 'संगियाए अज्जो ! देवा देव लोएस पूछा ין

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