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२३. नव तत्त्व में भेला अलग द्वार
व्यवहार नय में नौ पदार्थ सम्मिलित है तथा निश्चय नय में अपने अपने स्वभाव में रहते हैं । पुण्य, पाप, आश्रव बंध एवं अजीव ये पांच तत्त्व सम्मिलित है और जीव, संवर निर्जग एवं मोक्ष ये चार तत्व सम्मिलित है । अव जीव भाजन है । इसमें शरीर अजीव है, पुण्य करता भी है भोगता भी है, आश्रव से कर्म आते हैं, संघर से कर्ष रोकने हैं । निर्जरा से कर्म तोड़ते हैं और नये बांधते हैं व पुराने टूटते भी हैं, इसलिये जीव तत्त्व नौ ही तत्त्वों में पाता है । अजीव धर्माधर्म, आकाश, काल ये स्वयं अजीव पदार्थ है, बाकी सब इसमें रहते हैं, परन्तु उनके गुण नहीं है इस कारण से अलग है । पुद्गल स्वयं अजीव है, जीव के लगे हुए हैं, जीव को सुख दुख देने वाले हैं, कर्म रूप में परिणमन होते हैं अतः शुभाशुभ भी है कर्मों को लाते भी हैं, बांधते भी हैं, पुद्गल को संवरने अर्थात् रोकते भी हैं, निर्जरते ( क्षय करते) भी हैं, क्षय भी करे अतएव अजीव में पांच पदार्थ स्वयं अजीव सहित मिलते हैं । पुण्य करने वाला जीव है, पुण्य स्वयं अजीव है, शुभ रूप में परिणमन होवे इससे पुण्य है, पुण्य बांधे उस समय पाप भी बांधता है, कर्म मी आते हैं, संवर होवे निर्जरा होवे, बंधन होवे, क्षय भी होते हैं, ऐसे पाप आदि सभी जाने ।