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( २८ ) जीव का चौथा भेद- 'वादर एकेन्द्रिय का पर्याप्ता' (१) गति नियंञ्च की (२) जाति एकेन्द्रिय (३) काया-पांच (४) दंडक पांच (५) प्राण-चार (६) पर्याप्ति-चार (७) आयुष्य जघन्य- अंगुली का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की । (९) आगत तीन-मनुष्य, नियंच एवं देव गति । (१०) गत- दो- मनुष्य एवं तिर्गच । (११) गुण स्थान-एक पहला । __जीव का पांचवां भेद---'वेइन्द्रिय का अपर्याप्ता" (१) गति-तिर्यश्च की (२) जाति-बेइन्द्रिय (३) कायावस (४) दंडक-सत्रहवां (५) प्राण-पांच (६) पर्याप्ति-चार (७) आयुष्य-जघन्य उत्कृष्टा अंतर्मु हुर्न का (८) अवगाहनाजघन्य उत्कृष्ट अंगुली का असंख्यातवां भाग (९) आगतदो मनुष्य तिर्यश्च की (१०) गत-दो मनुष्य तिर्यंच की (११) गुणस्थान-- दो प्रथम व दूसरा । '
जीव का छठा भेद- "बेन्द्रिय का पर्याप्ता । १-गति- २-जाति ३-काय एवं ४-दण्डक । ये सब बेन्द्रिय अपर्याप्ता के समान जानना चाहिये। ५-प्राण- छः ६-पर्याप्ति - पांच ७-आयुष्य-जघन्य अन्तमु हुर्त का, उत्कृष्ट बारह वर्ष का ८-अवगाहना-जघन्य अंगुली का असंख्यातवा भाग, उत्कृष्ट बारह योजन की ९-आगत-दो- मनुष्य व तिर्यञ्च की १०-गत-दो- मनुष्य व तियञ्च की ११-गुणस्थान-एक-प्रथमः। -