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को प्राप्त हुये। ऐसे ही चार कषाय तथा अतिचार आदि से युक्त गन्दे पानी के समान धर्म जानना, अतः जो ऐसे धर्म का आराधन करेंगे वे सुखी होंगे और आगे शुद्ध धर्म को भी प्राप्त करेंगे किन्तु गन्दे पानी से घृणा करने वाले के समान धर्म नहीं किया साधुपन को श्रद्धा नहीं वे बहुत दुखी होंगे । यह भावार्थ धर्म में होने के लिये कहा परन्तु साधना तो उत्कृष्ट संयम की करनी चाहिये ।
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फिर कोई कहे कि साधु होकर किवाड़ खोले तथा बन्द करे उनका पहला महात्रत भंग होता है ऐसे बोलने वाले एकान्त अविचारितं प्ररूपणा करते हैं । इसके लिए सूत्र में किसी भी स्थान में किवाड़ खोलने व बन्द करने का निषेध नहीं किया है और जो निषेध किया ऐसा कहते हैं वे चार सूत्रों की साख देते हैं वे गलत साख देते हैं । श्री उत्तराध्ययन सूत्र के पैंतीसवें अध्याय में चित्रामण सहित किवाड़ आदि छः बोल वर्जित किये, वे तो साधु साच्ची दोनों के लिए वर्जित किये हैं, वहां साधु साध्वी कैसे रहे? क्यों यहां किवाड़ का कारण नहीं, यहां इन्द्रियों के विकार को छोड़ने के लिए कहा है, फिर श्री आवश्यक सूत्र में ऐसे स्थानों में गोचरी नहीं जाने का कहा वहां साधु साध्वी दोनों के लिए मना किया है, श्री सूयगडांग सूत्र में एक, दो, चार बातें मना की वे जिनकल्पी की
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