________________
(१५) पण्डित साधु टालने का उपाय करे ऐसा करते हुए भी कोई अतिचार लगे तो मूलव्रत भंग नहीं होते । जो गंभीर दृष्टि रखें तथा सूत्र के अनुसार व्यवहार नहीं करे तथा एकान्त खींचने से भारी दोष का स्थान है इसलिए हेय, ज्ञेय, उपादेय कारण कार्य आदि विचार कर उत्सर्ग अपवाद देख के वर्ताव करें । परन्तु जितना जितना प्रमाद है, वह वीतराग की आज्ञा में नहीं है किन्तु छट्टे गुण स्थान पर्यन्त है, सातवें गुण स्थान में प्रमाद नहीं है। _____चौथा कषाय आश्रवः-समुच्चय पच्चीस कषाय को भाश्रव कहते हैं । ये चार तो एकांत अशुभ आश्रव ही है । .
पांववा योग आश्रव मन, वचन, काया के योग माठे (अशुभ) प्रवावे वह आश्रव है परन्तु निश्चय नय में, तो भशुभ शुभ योग सब सावध है सब छोड़ने योग्य हेय पदार्थ है परन्तु व्यवहार नय में शुभ योग से निर्जरा होती है इस अपेक्षा से इसे संवर कहते हैं । प्राणातिपात आदि पांच एकान्त अशुभ है, पांच इन्द्रियों के विषय आश्रय है तथा सुनना व देखना ये ज्ञान रुप है। इन्द्रिय आवरण का क्षयोपशम है। तीन योग तो समयोग की तरह हैं. महोपगरण तथा सुचि कुसग ये यतना पूर्वक नहीं प्रवर्तीवे तो आश्रव तथा यत्नापूर्वक प्रवावे यह भी निश्चय नय म तो माश्रव है। इस प्रकार सभी आश्रव के वीस भेद है,