________________
(११७) जीव कर्म रहिन है तो संसार में सुख दुःख कैसे पाते हैं ? यदि कर्म रहित जीव संसार में भ्रमण करेंगे तो सिद्ध भी भ्रमण करेंगे.. परन्तु वे घूमते नहीं हैं इसलिए नहीं मिलती हैं । (४) प्रश्न- हे स्वामिन् ! जीव का, स्वरुप कैसा है ? उत्तर-जीव तथा कर्म इन दोनों का अनादि काल का संयोग है । नये उत्पन्न नहीं हुए । (५)प्रश्न-हे स्वामिन् जाव तथा कर्म का अनादि काल का संयोग है तो जीव व कर्म का संयोग कैसे छूटता है ? उत्तर--जैसे धातु और मिट्टी का संयोग अनादि का है किसी ने किया नहीं परन्तु अग्नि के संयोग से दोनों ही अलग होते हैं, उसी प्रकार जीव व कर्म का संयोग ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा तप के उपाय से छूटता है । जीव व कर्म अलग अलग होते हैं । (६) प्रश्न-हे स्वामिन् ! कर्म किसने किये तथा कर्म करने का स्वाभाव किसका है ? उत्तर-व्यवहार नय से तो जीव ने कर्म किये हैं परन्तु निश्चय नय से तो जीव करें का कर्त्ता नहीं है। कर्म का कर्ता कम है कि कर्म का कर्ता आश्रव है ? यदि जीव करता है तो सिद्ध भी जीव है वे क्यों नहीं करते ? उत्तर-संयोगी जीव कम सहित है अतः वह पुराने कर्मों से नये कर्म ग्रहण करता है, इस न्याय से कर्म का कर्ता कर्म है। द्रव्य कर्न वर्णादि सहित कर्म वर्गणा के चौस्पी स्कन्ध द्रव्य कर्म को ग्रहण