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(१३६) शुद्ध नय में जीव, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष ये चार अरूपी है। पुण्य, पाप, आश्रव तथा वन्ध ये चार रूपी है, तथा अजीव रूपी अरूपी दोनों है।
।। इति रूपी अरूपी द्वार समाप्तम् ।।
१० जीवा जीव द्वार के एक अपेक्षा नौ ही तत्त्व जीव, एक अपेक्षा एक तत्त्व जीव तथा आठ तत्त्व अजीव, एक अपेक्षा आठ तत्त्व जीव तथा एक तत्व अजीव, एक अपेक्षा चार तत्व जीव और पांच तत्व अजीव, एक अपेक्षा एक तत्व जीव, एक तत्व अजीव तथा सात तत्व जीव । अजीव के पर्याय कैसे ? नव पदार्थ का जानपना तत्व है, जीव को जीव जाने यह जानपना जीव तत्व है, अजीव जाने यह अजीव तत्व, पुण्य को पुण्य जाने तो पुण्य तत्व, पाप को पाप जाने तो पाप तत्व इत्यादि ज्ञान होना तत्व है, पर पुण्य पाप अजीव आदि ये तत्व नहीं है, इस अपेक्षा से नौ पदार्थ का ज्ञान
है, ज्ञान जीव का गुण है, इसलिये नौ तत्व जीव है।
क तत्व जीव तथा आठ तत्व अजीव कैसे ? क्योंकि बात तत्वो के द्रव्य पुद्गल है और पुद्गल अजीव है, इस