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अपेक्षा से एक तत्व जीव तथा आठ तत्व अजीव है । ए तत्व अजीव तथा आठ तत्व जीव वह कैसे ? सात तत्व भाव जीव है क्योंकि सात तत्व जीव के पास में है । पन्नत्रणा सूत्र के पांचवें पद में कहा है कि "नेरइया अनंता पज्जवा पन्नचा" यहां ज्ञान अज्ञान वर्ण आदि स जीव कहे हैं, श्री भगवती सूत्र के सातवें शतक के सा उद्देश्य में जीव का भोग जीव अजीव दोनों बताये हैं | अजीव के भोग नहीं, इस अपेक्षा से कर्म और काया को जीव कहा है । श्री भगवती सूत्र के बारहवें शतक के पहिलें उद्देश्य में आठ आत्मा का वर्णन है । द्रव्य आत्मा तो जीव है | इसलिए सात तत्व के भाव को जीव कहा है । श्री भगवती सूत्र के तेरहवें शतक के सावर्वे उद्देश्य में काया को आत्मा बताने के साथ साथ संचित तथा जीव भी कहा है । श्री भगवती सूत्र के पच्चीसवें शतक के दूसरे उद्देश्य में जीव के चौदह भेद का वर्णन है। जो काया की अपेक्षा से कहा है। सातवें व्रत में " सच्चिचाहारे" सचित तो काया होती है यदि अजीव कहते हो तो सचित कोई नहीं रहा | श्री समवायांग सूत्र में तथा ठाणांग सूत्र में दो राशि का कथन है, तो क्या यहां तीसरी मिश्र राशि है ? श्री दशवैकालिक सूत्र के आठवें अध्याय में 'देह दुक्खम् महा फलम्' कहा है अतः अजीब को दुख नहीं होवे और दुख
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