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से शुभाशुभ वर्णा आदि सहित, ५ गुण जीव को मोक्ष में जाने से रोके । १ -- मोक्ष द्रव्य से एक प्रकृत, २ - क्षेत्र से असंख्य, काल से एक समय, ४ - भाव से अरूपी, ५ --गुण कर्म से छूटना ।
ये तो मुख्य नय में कहे हैं, तथा औपचारिक नय पुण्य, पाप, आश्रव, बंध ये चार जीव के परिणाम गिने तो १ - द्रव्य से अनन्त, २ -- क्षेत्र से सर्व लोक में, ३ - काल से अनादि अनन्त तथा अनादि सांत ४ - भाव से अरूपी, ५ - गुण से वैसे ही । तथा पुण्य पाप के बंध परिणाम अवंतर से गिने तो बहुलता से जाने, तथा एक एक प्रकृति का बंध काल से अनादि अनंत, अनादि सांत, सादि सांत ये भांगे मिलते हैं । संवर निर्जरा, मोक्ष के १ - द्रव्य अनंत २-- क्षेत्र से सर्व लोक, ३ - काल से संख्यात काल तक दूसरे परिणाम में नहीं परिणमें उतने समय पर्यन्त, ४- - भाव से शुभाशुभ वर्णादि सहित, ५ - गुण ग्रहण, गल जावे, मिल जावे, बिखरे जावे । तथा सिद्ध को मोक्ष तत्त्व में गिने तो १ - द्रव्य से अनन्त, २ - क्षेत्र से पैंतालीस लाख योजन प्रमाण, लोक के मस्तक पर सिद्ध शिला है, उसके ऊपर एक योजन के चौबीसवें भाग सिद्ध की अवगाहना है, ३ - काल से अनादि अनंत, ४-भाव से अरूपी, ५– गुण केवल ज्ञान आदि । एक सिद्ध की अपेक्षा १- द्रव्य से एक, २ -- क्षेत्र