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(१६८) ३-पुण्य का द्रव्य पुण्य शुभकृत रूप, गुण जीव को सुखदाता. पर्याय अनंत, चारित्र मोहनी के विकार से उत्पन्न हुए संक्लिप्ठ विशुद्ध स्थान तथा अनंत परमाणुओं के वर्णादि तथा अनंत जीवों पर है।
४-ऐसे ही पाप का द्रव्य पाप, गुण जीव को दुख देने वाला । पर्याय अनंत वर्णादि । _५-आश्रव का द्रव्य आश्रय मिथ्यात्वादि । गुण नये कम ग्रहण करने का । जीव को मलिन करने का, तथा उज्ज्वल भी करे, पर्याय अनन्ता कर्म आये, लेश्या के, योग के कपाय के परिणाम, मिथ्यात्व का द्रव्य मिथ्यात्व, गुण विपरीत श्रद्धा करना पर्याय अनन्त, मिथ्यात्व मोहनी का पर्याय इत्यादि सब के कहना।।
६-संवर का द्रव्य संवर समकित आदि, गण कर्म रोकने का, पर्याय अनन्त कर्म वर्गणादि, समकित का द्रव्य समकित, गुण श्रद्धना पर्याय अनन्ती वस्तु श्रद्धे, इत्यादि सबका कहना। __७-निर्जरा का द्रव्य निर्जरा, गुण कर्म तोड़ने का, पर्याय अनन्त, कर्म द्रव्य वर्गणा टूटी।।
८-बंध का द्रव्य बंध, गुण जीव को बांधने, का पर्याय अनन्त, कम द्रव्य वर्गणा बांधी।।
९-मोक्ष का द्रव्य मोक्ष, गुण जीवों को मुक्त करने का । पर्याय अनन्त । कर्म टूटे अनन्त गुण प्रकटे इसलिए